जब दो दिलों का प्रेम हार गया देश प्रेम के आगे...
मैंने पहले ही कहा था कि हिमाचल के कण-कण में लोक कथा बसी हुई है। ये कथा लैला-मजनू, शीरीं-फरहाद, सोहनी-महिवाल की तरह दुखांत है। ये प्रेम कथा है कुंजू-चंचलो की, जिसमें नश्वर प्रेम देश प्रेम के आगे हार जाता है...
कभी हिमाचल में एक राजा हुआ करते थे, जिनकी सेना में एक वीर सैनिक कुंजू था। वह इतना जांबाज था कि दुश्मन उसके नाम से थर्राते थे। उसकी वीरता पर एक नर्तकी मर मिटी थी। वह नर्तकी चंचलो नाम से प्रसिद्ध थी। कुंजू भी चंचलो को दिलोजान से चाहता था। चंचलो को राजा और उसके मुख्य मंत्री भी चाहते थे।
मुख्य मंत्री को यह बात मालूम थी कि चंचलो के दीवाने राजा और कुंजू भी हैं, लेकिन वह चंचलो का प्यार खुद पाना चाहता था। उसके मन में यह बात घर कर गई कि चंचलो का प्यार पाने के लिए उसे रास्ते से अवरोध समान न सिर्फ कुंजू, बल्कि राजा को भी हटाना होगा...
मंत्री का चेहरा देखकर कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता था कि उसके पास कातिल जैसा दिमाग है। उसने एक योजना बनाई, जिसके तहत उसने राजा से बताया कि सीमा पर पड़ोसी राज्य किसी भी समय आक्रमण कर सकते हैं। दुश्मन के हमले को सिर्फ पराक्रमी कुंजू ही नाकाम कर सकता है। इसलिए उसे राज्य की सीमा पर भेज दिया जाए।
कुंजू ने जैसे ही यह समाचार सुना, देश की रक्षा करने और दुश्मनों के दांत खट्टे करने के लिए वह व्यग्र हो गया। वह तुरंत राजा से आदेश लेने चल पड़ा। चंचलो को जैसे ही कुंजू के राज्य-सीमा पर
जाने की खबर मिली, वह रोने लगी। वह अच्छी तरह जानती थी कि कुंजू अगर चला गया, तो फिर दोबारा लौटकर उसके पास नहीं आ पायेगा। वह कुंजू के सामने खूब रोयी- गिरगिरायी और उसे न जाने के लिए मनाने की कोशिश की। उसने अपने प्यार की भी दुहाई दी। कुंजू ने उसे अपने सीने से लगा लिया। एक-दूसरे की बाहों में दोनों देर तक रोते रहे। फिर कुंजू ने चंचलो को देश के प्रति कर्तव्य की याद दिलाई और आंसू पोंछ हंसकर उसे विदा करने को कहा। चंचलो का प्रेम हार गया और कुंजू का देश प्रेम जीत गया। वह सीमा की रक्षा करने के लिए प्राण न्योछावर करने चल पड़ा।
मुख्य मंत्री की बनाई योजना सफल हो गई। कुंजू जैसे ही राजाज्ञा लेकर महल से निकला, मंत्री ने उसके पीछे अपने सैनिक लगा दिए। जब लगातार चलने के बाद वह विश्राम करने के लिए किसी पेड़ के नीचे रुका, तो मुख्य मंत्री के सैनिक ने उसे धोखे से मार दिया। कुछ समय बाद किसी ने मुख्य मंत्री की कुटिल योजना और कुंजू के मारे जाने की खबर चंचलो तक पहुंचा दी। कहते हैं कि यह सब सुनकर चंचलो इतनी व्यथित हुई कि उसने एक खाई में छ्लांग लगाकर अपनी जान दे दी। राजा को यह बात मालूम पड़ गई कि चंचलो कुंजू से प्यार करती थी और उसका विछोह बर्दाश्त न होने के कारण उसने अपनी जान दी है। उसे लगा कि प्यारी चंचलो की जान उसकी वजह से गई है। इसलिए उसने स्वयं सीने में खंजर भोंककर अपनी जान दे दी। इधर कुंजू के गुरु को जब यह सारी कहानी मालूम चली कि मुख्य मंत्री के कारण उसके शागिर्द, राजा और कुंजू की जान गई है, तो उसने सोचा कि अब उसका यह दायित्व बनता है कि पाप की जड़ को वह खत्म कर दे। रात के अंधेरे में अपना मुंह ढंक कर वह घर से निकल पड़ा और सीधे मुख्य मंत्री के घर पहुंच गया। उसने मुख्य मंत्री की गला दबाकर हत्या कर दी...।
दुखद अंत वाली यह कथा सुनाकर बड़े-बुजुर्ग यहां युवाओं को सचेत करते हैं- कुंजू, चंचलो के साथ-साथ राजा और उसके मुख्य मंत्री की भी तरह प्रेम न करना...
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