ब्लॉग के टाइटल और डिस्क्रिप्शन

प्रकृति ईश्वर है। उन्हें प्रणाम। मैंने अपना यह ब्लॉग ऑपन करने में लंबा समय लगा दिया।इसे काफी पहले शुरू करना चाहिए था, लेकिन लगा कि इसे शुरू करने का औचित्य क्या होगा? इस पर रेगुलर पोस्ट तो नहीं-ही कर पाऊंगी, पर अब एक दोस्त की सलाह पर इस ब्लॉगस्पॉट को अपने नाम से ऑपन कर लिया। इसके पीछे एक प्रमुख वजह यह भी रही कि अब मैं प्रकृति की गोद सरीखा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहने लगी हूं। जन्मस्थान, पढ़ाई-लिखाई और पहली जॉब मुंगेर में होने के कारण और फिर पत्रकारिता में बहुत लंबा समय लगभग 16 साल तक दिल्ली में गुजारने के बाद यहां धर्मशाला के निवासस्थल बन जानेे के कारण इस ब्लॉग का डिस्क्रिप्शन मुंगेर टू धर्मशाला वाया दिल्ली के रूप में दिया गया। अब जबकि इस ब्लॉग की शुरुआत धर्मशाला में हुई है और लगभग पौने 2 महीने (8 जून को सुबह 4 बजे यहां आना हुआ) बीत जाने के बाद यह एहसास और गहरा हुआ है कि प्रकृति ईश्वर स्वरूपा है। तभी तो हम इंसानों ने देवी-देवताओं के स्थल पर्वत-पहाड़ या जंगलों के बीच निर्मित किए हैं। इस स्थान के कण-कण में विशेष अर्थ वाली कहानी छिपी है। रोचकता मौजूद है। साथ ही, पग-पग पर प्रकृति के अलग-अलग स्वरूपों में ईश्वर की आभा विराजमान है। इसलिए मैं अपने अनुभवों के जरिये आभा किरणों को शब्द देने की कोशिश करूंगी। ब्लॉग की इस यात्रा में मुंगेर, दिल्ली के भी अनुभव शामिल होंगे।  इसमें साहित्य, रंगमंच और अध्यात्म पर आधारित आलेख, इंटरव्यूज, बुक रिव्यू भी शामिल होंगे। कुछ बातें स्वयं कहूंगी, तो कुछ बातें पात्रों की कहानियों के जरिये सामने रखी जाएगी।  

Comments

  1. लिखते रहिये। प्रकृति सभी को इतना विशेषाधिकार नहीं देती है। वहीं आपको अपने सानिध्य में बुलाकर विशिष्ट अनुभवों का साक्षात्कार कराने के लिए चुना है।
    हिमालय की भौगोलिक, प्राकृतिक, आध्यात्मिक दिव्यता का आनंद लीजिए और ब्लॉग के माध्यम से हमें भी लाभान्वित कीजिए... 😊👍

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया

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  2. तुम तो पत्रकारिता में हो तो ब्लॉग बहुत पहले शुरू करना चाहिए था खैर
    देर आयद दुरुस्त आयद।शुरुआत एक मनोरम जगह से हुई है शायद नियति को प्रकृति के असल रूप तक पहुंचना था और धर्मशाला को यह सौभाग्य मिलना था ।

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    1. प्रेरित करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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