अनुशासन का पाठ


हिमाचल से सीख लें अनुशासन के पाठ

दिल्ली की भागम-भाग जिंदगी से थके-ऊबे मन को जब हिमाचल प्रदेश आने का अवसर मिला, तो चारों ओर फैली हरियाली देखकर सबसे पहली बात जो मन में आई, वह यह थी कि जल्दी-जल्दी ढेर सारी सांसें ले लूं। काश! हम इंसानों के शरीर में ऑक्सीजन सिलिंडर जैसा कुछ इनबिल्ट होता, तो उसमें भी शुद्ध् ताजी हवा भर लेती। दिल्ली में घर और कला-प्रदर्शनियों में लगी पेंटिग्स में पहाड़ों पर पड़ने वाली सूर्य-किरणों जैसी आभा चेहरे पर सजाए कांगड़ा बहू, कांगड़ा किला, कांगड़ा चाय के बगान, हिमाच्छादित ऊंचे-ऊंचे पहाड़ तो खूब देखे थे, लेकिन आज कांगड़ा बहू छोड़कर अन्य सभी दृश्य तस्वीरों से निकलकर आंखों के सामने थे। हम मैदानी इलाके वालों को पहाड़ खूब लुभाते हैं। अलबत्ता पिछले एक महीने से यह क्रम लगातार बना हुआ है कि जब भी सुबह आंख खुलती है, तो बच्चों की तरह बालकनी में आकर सबसे पहले देख कर यह तसल्ली कर लेना चाहती हूं कि पहाड़ अपनी जगह पर अडिग तो हैं। उनकी ऊंचाई तो कम नहीं हो गई। आगे यह भी जरूर देख लेना चाहती हूं कि किस तरह सुबह सूर्य की पहली किरण को भी पहाड़ लांघने में मशक्कत करनी पड़ती है। कोरोना संकट की वजह से कांगड़ा के ज्यादातर दर्शनीय स्थल तो बंद हैं, लेकिन बाजार खुल चुके हैं। तंग सड़कों और गलियों से गुजरते बाजार में जरूरत के हर सामान उपलब्ध हैं। चीजों के दाम तो लगभग दिल्ली जैसे ही हैं। सड़कों की बात चली है, तो बता दूं कि पहाड़ी रास्ता होने के कारण सड़कें कम चौड़ी हैं, इसलिए मैदानी इलाकों में जिन्हें तेज और यातायात के नियमों का उल्लंघन कर गाड़ी चलाने की आदत है, वे यहां आकर पंक्तिबद्ध होकर और जरूरी रफ्तार से गाड़ी चलाने के अनुशासन को तो निश्चित तौर पर सीख जाएंगे। वर्ना या तो उनकी गाड़ी गहरी खाई में गिर सकती है या फिर वन-वे ही अनजान रास्तों पर उन्हें लगातार घंटों तक गाड़ी चलानी पड़ सकती है (बेहद कम चौड़ी सड़क पर गाड़ी मोड़ने के लिए जगह ही नहीं मिलेगी) दर्शनीय स्थल बंद होने के बावजूद आपको बहुत सोचना नहीं पड़ेगा, क्योंकि प्रकृति की अनुपम छटा तो चारों ओर बिखरी हुई है। आप जहां भी रुक जाएं, आपको नयनाभिराम दृश्य दिख ही जाएंगे। कई गांव तो आज भी अपने पुराने रंग-रूप में मौजूद हैं। बारिश होते ही पहाड़ों और खाली मैदानों की तरफ इंद्रधनुष के दर्शन हुए नहीं कि तुरत चटख धूप निकल आती है, जैसे कि कभी बारिश हुई ही नहीं हो। एक बात जो स्पष्ट तौर पर अन्य जगहों से हिमाचल को अलग करता है, वह है यहां के लोगों की बातचीत और व्यवहार में साफगोई। मोल-भाव को लेकर ग्राहकों से माथापच्ची करने की बजाय दुकानदार साफ लहजे में बोलते हैं। घर के लिए जरूरी सामान खरीदते हुए कोतवाली बाजार में एक दुकानदार ने कहा- यदि आपको सामान पसंद आए, तो खरीदें, लेकिन मोलभाव करें। ईमानदारी अभी-भी बची हुई है लोगों में। दुकानदार, टैक्सी वाले, सब्जी वाले या दूसरे जरूरी काम में लगे लोगों की ईमानदारी को देखते हुए गूगल में अंकित यह बात बरबस याद जाती है- भारत में ईमानदारी में केरल के बाद दूसरा स्थान हिमाचल प्रदेश का आता है। एक जगह तो दुकानदार ने अपने सामान में भरोसा दिलाने के लिए यहां तक कहा कि आप यदि इस्तेमाल के बाद सामान की क्वालिटी से खुश हो पाएं, तो सामान वापिस भी कर सकते हैं। मसूरी जैसे हिल स्टेशन पर जहां दुकानदार सिर्फ मोल-भाव करते हैं, बल्कि ग्राहकों के शब्दों में कहें, तो लूट लेते हैं। कांगड़ा बाजार में घूमते हुए एक छोटी-सी दुकान पर मोबाइल छूट जाने पर आधे किलोमीटर तक दुकानदार हमारा पीछा करता हुआ आया और हमें मोबाइल थमा गया। मौसम का असर कहें या रमणीक स्थान का प्रभाव, यहां लोगों को छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा बहुत कम आता है। धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम के पास से शाम की सैर करते हुए एक दिन जब गुजर रही थी, तो देखा कि एक जगह पर लोगों की भीड़ लगी हुई है और दो लोग थोड़ी तेज आवाज में बोल रहे हैं। पूछने पर पता चला कि जमीन के बंटवारे को लेकर दो पड़ाेसियों में तनातनी हो रही है। दिल्ली या नोएडा में तो अब तक सिर-फुटव्वल हो चुका होता। वहीं, एक दिन चलते-चलते स्ट्रीट फूड खाया और आस-पास खड़े कुत्तों की झुंड के डर से जब प्लेट खड्डों की तरफ सरकाने लगी, तो दुकानदार ने तुरंत ही कह दिया- यदि जूठी प्लेंटें डस्टबिन में ही डाली जाएंगी, तभी तो हिमाचल साफ रह पाएगा। दिल्ली में तो प्रदूषण और पर्यावरण के नाम पर बातें बड़ी-बड़ी होती हैं, लेकिन आज भी पॉलीथीन से सड़कें, नालियां अंटी पड़ी होती हैं। जहां कांगड़ा में हर जगह कागज से तैयार पैकेट में सामान दिया जाता है, वहीं दिल्ली, एनसीआर में तो पॉली बैग्स का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। थोड़े दिनों में ही कांगड़ा में ढेर सारे सीख देने वाले अनुभव हो गए, पर अभी तो सिर्फ ये कहना चाहूंगी कि मैदानी इलाकों के लोगों को कुछ दिन यहां आकर जरूर रहना चाहिए, ताकि अनुशासन के कुछ बेहद जरूरी पाठ सीख सकें।

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