नोखू-धन्ना और राजा संसारचंद की प्रेम कथा
धर्मशाला क्या मुझे तो लगता है कि आप हिमाचल के किसी भी इलाके में चले जाएं, गाहे-बगाहे अपनी भेड़-बकरियों की झुंड को हांकते चरवाहे आपको मिल जाएंगे। इन्हें आप सुच्चे स्थानीय (जिनमें जीन की कोई मिलावट नहीं) कह सकते हैं। मेरे विचार से संभवत: इसी वजह से हिमाचल की लोककथाओं में चरवाहे शामिल हैं। खासकर यहां के लोक में घुली-मिली प्रेम कथाओं में तो जरूर। ये चरवाहे आज भी अपनी विशेष पोशाक पहनते हैं, जो इन्हें प्राचीन समय और अपनी संस्कृति से जुड़े होने का आभास दिलाता है। यूं ही एक दिन ईवनिंग वॉक करते समय अपनी भेड़-बकरियों की झुंड के साथ एक चरवाहा नजर आया। उससे तो बात नहीं हाे पाई, लेकिन बगल से गुजर रहे एक पथिक, जिन्हें अक्सर आते-जाते देखा करती थी। हिमाचल के किस्से-कहानियों के बारे में जानने की गरज से मैंने स्वयं पहले करते हुए उनसे पूछ ही लिया-ये चरवाहे कहां रहते होंगे? इनका अपना कोई निश्चित ठिकाना नहीं होता है। ये सालों भर घूमते रहते हैं। भेड़-बकरियां ही उनकी रोजी-रोटी हैं। उन्हीं को पहाड़-जंगल-मैदान में चराते हुए अपना जीवन व्यतीत कर लेते हैं। जब पहाड़ के नीचे बसे गांवों में चारे की कमी हो जाती है, तो ये अपने पशुओं के झुंड को लेकर पहाड़ के ऊपरी हिस्सों में चले जाते हैं, जहां चारा बहुतायत में मिल जाता है।-उन्होंने बताया। जब मैंने उनसे कहा कि आधुनिक युग में भी इन्होंने अपनी पोशाक नहीं छोड़ी है, तो इस पर उन्होंने बताया कि अब तो युवा पैंट-शर्ट वगैरह पहनने लगे हैं, लेकिन बुजुर्ग लोग अब तक अपने समुदाय की खास पोशाक ही धारण करते हैं। अब तक जो मैंने नोटिस किया है हिमाचल के लोग दिल्ली के लोगों की तरह जल्दी में नहीं रहते हैं। आपके लिए जो अनजानी बाते हैं, उन्हें अच्छी तरह समझा देना शायद वे अपना फर्ज समझते हैं। उन सज्जन ने आगे यह भी बताया कि हिमाचल में घूमते रहने वाले चरवाहे पुरुष गद्दी कहलाते हैं, तो स्त्रियां गद्दन। उस अनजाने-से पथिक ने जब जाना कि मैं एक अखबार के लिए काम करती हूं, तो उन्होंने अपनी तरफ से कुछ और जानकारी देना भी अपना धर्म मान लिया। लगे हाथ उन्होंने लोक में प्रचलित नोखू गद्दन-धन्ना गद्दी और राजा संसारचंद की प्रेम कथा भी सुना दी। आप भी यह कथा जान सकते हैं---
नोखू गद्दन अपूर्व सौंदर्य की मल्लिका थी। मानो प्रकृति ने उसे फुर्सत में रचा हो और अपना सौंदर्य उस पर न्योछावर कर दिया हो। अन्य वनवासिनों की तरह प्रतिदिन वह स्वयं को प्रकृति प्रदत्त उपहारों से सुसज्जित करती थी। कांगड़ा के महाराज संसार चंद, जो गोरखा वीरों और पंजाब के राजा रंजीत सिंह को भी अपने पराक्रम का लोहा मनवा चुके थे, नोखू के पास अपना दिल हार गए। माना जाता है कि राजा एक बार शिकार के लिए धौलाधार पर्वत की वादियों में गए। मनोरम झरने और फल-फूल से लकदक एक स्थान को देखकर उनके साथ आए सिपाहियों ने वहीं डेरा जमा लिया और विश्राम के लिए तंबू तान दिए। रात्रि विश्राम कर सुबह महाराज शिविर से बाहर निकले और टहलते हुए झरने के पास गए। तभी उन्होंने देखा कि सामने दिव्य सुंदरी अनुपम फूलों से श्रृंगार किए हुए और कमर के पास हाथ से पानी भरने वाला कलश थामे झरने के पास आ रही है। महाराज वहीं रुक गए और के सौंदर्य को अपलक निहारने लगे। उन्हें अपनी आंखों पर सहसा विश्वास नहीं हुआ। आंखें मलते हुए उन्होंने अनुमान लगाया कि संभवत: वह कोई देव कन्या होगी। कला प्रेमी राजा ने आगे बढ़कर उस देव कन्या का रास्ता रोक लिया। उन्होंने उससे पूछा-क्या आप स्वर्गलोक से आई हैं? इस पर नोखू खिलखिलाकर हंस पड़ी। उसने अंगुली से सामने एक झोंपड़ी की ओर इंगित किया। बताया कि सामने वाली वह झोंपड़ी अभी उसका घर है। वह एक गद्दन है और पशुओं का चारा खत्म होने पर वह परिवार के साथ दूसरी जगह चली जाएगी। अब राजा बेचैन हो गए। उन्हें लगा कि कुछ पलों में उनकी जिंदगी छिन जाएगी। उन्होंने आव देखा न ताव और अपना परिचय देते हुए उसके सामने विवाह का प्रस्ताव दे दिया। इस प्रस्ताव पर नोखू अपने भाग्य पर इतरा भी सकती थी, पर वह तो किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। वह तो एक गद्दी धन्ना से प्यार करती थी। दिलेर धन्ना उसे जी-जान से चाहता था। कई खूबियों के अलावा धन्ना के पास कहानियों का खजाना भी था, जिन्हें वह दिलजोई करते समय नोखू को सुनाता रहता था। राजा तो राजा ठहरे। हर प्रेमी के पहरेदार। आगे कथा में नोखू को राजा से ब्याह करना पड़ता है। अब नोखू गुलाब (राजा का दिया नाम) बन जाती है। राजा की पहले से तीन और रानियां थीं। चौथी गुलाब बन जाती है, पर गुलाब के नसीब में तो कांटे अवश्य बोए रहते हैं। लोगों के बीच गुलाब रानी गुलाब दासी ही कहलाती रही। समाज में उसे कभी रानी का सम्मान नहीं मिला। राजा को फिर नर्तकी जमालो से प्रेम हो गया। कहते हैं कि गुलाब अक्सर अपने महल में अकेली बैठी रहती और दूर जंगलों-पहाड़ों की ओर ताकती रहती। उसे लगता कि दूर कहीं उसका धन्ना भेड़-बकरियां चराता हुआ इधर ही आ रहा है...
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