रोमांचक यात्रा

 इंदिरापुरम की पत्रकार विहार सोसायटी में कई वर्षों तक रहने के बाद जब धर्मशाला में इंडिपेंडेंट हाउस में रहने का अवसर मिला, तो अपनी छत भी मिली। छत पर जब भी जाती, तो लगता कि बचपन के दिनों में कैमरे की रील घूम गई है। मुंगेर खासकर अपने ननिहाल फरदा का परिदृश्य मन में तैर जाता और वहां की आवोहवा का एहसास प्रबल हो जाता। जब छत पर घर के सामने देखती, तो आगे खूबसूरत हिमाचल की धौलाधार पर्वत श्रृंखलाएं दिखतीं। धर्मशाला में बारिश खूब होती है। बारिश जब बंद हो जाती है, तो पहाड़ धुले-धुले और हरे-भरे नजर आते हैं। हरा रंग और चटख हो आता है। लगातार बारिश होने से पहाड़ से जब पानी धरती की ओर आते हैं, तो वे पहाड़ी नाले के रूप में तब्दील हो जाते हैंं। ये नाले आगे जाकर किसी नदी में जाकर मिल जाते हैं। बारिश होने के बाद रात में जब चारों ओर शांति छाई रहती है, तो पहाड़ी नाले में पत्थर से टकराकर कल-कल की आवाज घर दूर होने के बावजूद सुनाई देती रहती है। लगातार पानी पड़ते रहने से पहाड़ाें के कुछ भाग पर आकृतियां बन आई हैं। कहीं शंख जैसी आकृति दिखती है, तो कहीं भारत का नक्शा भी। एक जगह तो लगता कि तीन शंख एक सीध में बने हुए हैं।जब आसपास कोई नहीं होता, तो बच्ची की दूरबीन उठा लाती और सामने के पहाड़ों को निहारा करती। गर्मी के दिनों में भी बर्फ की पतली रेखा दिख जाती। पुरानी बर्फ मटमैले रंग की, तो ताजी बर्फ दूध की तरह सफेद। हमें तो कभी-कभी यह एहसास हो कि एक तरफ के पहाड़ शिवलिंग के आकार लिए हुए हैं। यहां अपनी वही बात याद आती। प्रकृति वास्तव में ईश्वर ही है। जब चिड़िया या चील को उड़ते हुए देखती, तो सोचती कि काश मैं भी उन पहाड़ों तक जा पाती। घर के पिछली तरफ को निहारती, तो सीढ़ीनुमा धान के खेत नजर आते। चीर, देवदार और कई दूसरे जंगली पेड़ भी नजर आते। आज भी याद है कि जब मैं बचपन में फरदा की छत से सड़क की ओर निहारा करती, तो पीपल, वट, अजान के पेड़ पंक्तिबद्ध दिखते। मां कहती है कि तुमलोगों के जन्म के पहले तो आम, जामुन के पेड़ भी हुआ करते थे। सड़क से पार ही गंगा नदी नजर आने लगती। बरसात के दिनों में तो उफनती गंगा बहुत विकराल लगती। आंखों पर जब थोड़ा जोर दें, तो दाहिनी ओर मुंगेर के कष्टहरनी घाट के किनारे सात मंजिला योगाश्रम नजर आता। घर के बगल की बारी में आलू, चना या मक्के की लहलहाती फसल भी नजर आ जाती कभी कभार। यहां के अलग-अलग घर और उसकी छत मुंगेर और फरदा की याद दिलाते हैं।

कोरोना ने हमलोगों की लाइफस्टाइल बदलने के साथ-साथ हमारे यातायात के साधनों और यात्रा करने के तरीकों को भी बुरी तरह प्रभावित किया। धर्मशाला आना भी कम एडवेंचरस नहीं रहा। हम कुल पांच लोगों का हवाई जहाज से जाना तय हुआ। पहले स्पाइस जेट एडमिनिस्ट्रेशन की तरफ से हवाई जहाज में ई-पास बनवाना जरूरी नहीं कहा गया, लेकिन जब हम बोर्डिंग के लिए अपनी टिकिट चेक करवा रहे थे कि टिकट चेक करने वाली महिला ने ई-पास की मांग कर दी। लाख बहसों और कोशिशों के बावजूद हमलोग हवाई जहाज पर चढ़ नहीं पाए और देखते ही देखते हमारी आंखों के सामने बिना हमें लिए हवाई जहाज अपने गंतव्य की ओर उड़ चला। 2 घंटे के बाद ही सभी तरफ से फोन आने लगे कि अब तक तो आपलोग पहुंच ही गए हाेंगे, क्योंकि हवाई जहाज से दिल्ली से धर्मशाला मात्र एक घंटे में पहुंचा जा सकता है। हमलोगों का सामान सुबह 7 बजे ही ट्रक के माध्यम से चल चुका था। अब हम ठहरें तो कहां? काफी जद्​दोजहद के बाद तय हुआ कि अपने सबसे अच्छे पड़ोसी, जिन्होंने हमें हर मुश्किल वक्त में साथ दिया है, उन्हें तथा एक ड्राइवर को साथ लेकर सड़क मार्ग से चला जाए। हमारे साथ दो बुजुर्ग होने के कारण ऐसा किया गया। रास्ते में ही सड़क मार्ग के लिए जरूरी ई-पास बने। 2.45 में शहर छोड़ने के बाद धीरे-धीरे हमलोग चल पड़े। हम सभी ने सिर्फ हल्का नाश्ता किया था। लेकिन कोरोना के डर से रास्ते में मिलने वाले किसी भी रेस्टोरेंट में हमलोगों ने खाना नहीं खाया। स्नैक्स के रूप में खाने-पीने के जो भी सामान हमारे साथ थे, हमलोगों ने उसी से अपना पेट भरा। रात करीब 8 45 बजे पंजाब के गुरदासपुर के एक लाइन होटल के पास हमलोग रूके और डरते हुए खाना खाया। हिमाचल की सीमा में प्रवेश करते ही हमलोगों के ई-पास की चेकिंग हर थाने पर होने लगी। चेक करने वाले पुलिस वाले को हमलोगों ने यह कभी नहीं बताया कि गाड़ी में बुजुर्ग लोग भी हैं। संयोगवश वे अपने पास बुलाकर कागज चेक करते और फोन से अगले थाने को सूचित करते। रास्ता बहुत अधिक जाना-पहचाना नहीं होने तथा तथा जगह-जगह पुलिस जांच होने के कारण सुबह 4 बजे हमलोग धर्मशाला के धौलाधर कॉलोनी पहुंचे। लगभग 17 दिनों तक अपने अच्छे पड़ोसी के साथ हमलोग होम क्वारंटीन में रहे। नई जगह में घर के स्पेस के अनुसार सामान लगाने, भोजन पकाने, बर्तन मांजने में दिन किस तरह निकल गए, पता ही नहीं चला। होम क्वारंटीन समाप्त होने के बाद हमलोगों ने दर्शनीय स्थल देखने की भी कोशिश की, लेकिन कोरोना ने सभी दर्शनीय स्थलों पर ताले लगा दिए हैं, जिससे बाहर गेट के पास ही खड़े होकर फोटो खिंचवा लिया और घर चले आए।


Comments

  1. सुन्दर संस्मरण.. 😊

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  2. बहुत सन्दर संस्मरण

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  3. बहुत सन्दर संस्मरण

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  4. बहुत सन्दर संस्मरण

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