कोरान काल की कथा सुना रहे साहित्य
कोरान काल की कथा सुना रहे साहित्य
Smita
कोरोना संकट ने न सिर्फ देश-समाज की जीवनशैली और अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है, बल्कि साहित्य और लेखन भी इससे अछूते नहीं रह सके हैं। वरिष्ठ साहित्यकार मानते हैं कि देश या वैश्विक घटनाक्रम साहित्य को गहरे तौर पर प्रभावित करते हैं। साथ ही, वे युवा सृजनशिल्पियों को इस बात की ताकीद भी करते हैं कि वैश्विक महामारी पर तुरत-फुरत और सतही लेखन कभी कालजयी साबित नहीं हो सकते हैं।
फेसबुक और दूसरे सोशल साइट्स पर आप जब भी नजर दौड़ाएंगे, तो आपको वैश्विक महामारी कोरोना के बारे में कविता, कहानियां, व्यंग्य यहां तक कि इस विषय पर लिखे जा चुके उपन्यासों के अंश भी आभासी दुनिया के दोस्तों की टाइमलाइन पर सजी मिल जाएगी। जब तक भारत में इस महामारी ने पैर नहीं पसारा था, तब तक अलग-अलग तरह के हंसगुल्ले और चुटकुले भी खूब रचे गए और वायरल हुए। जब इस महामारी की वजह से पूरा देश ही अपने-अपने घरों में कैद होने लगा, तब इसकी भयावहता ने लेखकों के अंतर्मन को अपने-अपने तरीके से झकझोरा। तब कुछ लेखकों ने इस समय का सदुपयोग करते हुए स्वयं को किताबों की दुनिया में डुबाे लिया, तो कुछ ने लेखन के लिए हाथों में कलम पकड़ ली। ताजे घटनाक्रम को तुरत कागज पर उतार लेने की युवाओं में लालसा रहती है, तो वरिष्ठ विपदा के गुजर जाने के बाद लिखना चाहते हैं। उनकी राय में पहले भी बंगाल के अकाल, भू-स्खलन, आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं और प्लेग, स्वीडिश फ्लू जैसी महामारियों ने साहित्य सृजन के लिए उकसाया है। लंबा समय बीत जाने के बावजूद गहन मंथन के बाद इन सभी संकटों पर लिखे गए साहित्य आज भी प्रभावी हैं।
कविता, व्यंग्य के लिए तकनीक बनी मददगार
हजार मास्क की ख्वाइश रखनेवाले... कविता के रचयिता व व्यंग्यकार पंकज प्रसून की कोरोना संकट पर लिखी एक कविता को हाल में फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने अपने ट्वीटर एकाउंट पर साझा किया था। हालांकि अब वे कोरोना पर न अधिक व्यंग्य लिख रहे और न कविता, लेकिन उनके कवि मित्र लगातार सोशल साइटों पर अलग-अलग एंगल से कविताएं लिख रहे हैं। वे जानकारी देते हैं, कविगण इन दिनों विशेष अर्थ वाली कविताएं नहीं, बल्कि तुकबंदियां कर रहे हैं। एक कवि महोदय ने तो कोरोना पर एक कविता संग्रह तैयार कर लिया। उनके जानने वालों ने कोरोना पर जितने भी गीत लिखे, सभी को संपादित कर उन्होंने एक पुस्तक का रूप दे दिया। पंकज इस बात पर जोर देते हैं कि यदि कविताओं की मात्रा बढ़ती है, तो क्वालिटी तो निश्चित तौर पर प्रभावित होती है। दूसरी ओर युवा व्यंग्यकारों के लिए यह संकट काल अवश्य आशा की किरण लेकर आया है। पंकज एक महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं, इन दिनों अखबार के पन्ने तो कम हो गए हैं, लेकिन व्यंग्य के कॉलम निरंतर प्रकाशित हो रहे हैं। टीवी के स्टूडियो बंद हैं, लेकिन स्काइप के जरिये हास्य-व्यंग्य को टीवी पर लगातार लाया जा रहा है। व्यंग्यकार फेसबुक पर लाइव आ रहे हैं। फेसबुक पर एक पेज है हास्य व्यंग्य, जिससे ढाई लाख लोग जुड़े हैं। इस पर कई व्यंग्य कवियों को लाइव किया जा रहा है, जिस पर हजारों व्यूज मिल रहे हैं। युवा कथाकार सिनीवाली पंकज प्रसून की इस बात पर सहमति जताती हुई बताती हैं, इस संकट काल में तकनीक साहित्यकारों के लिए एक बड़े मददगार के तौर पर उभरा है। ऑनलाइन या लाइव होने से न सिर्फ साहित्यकार अपनी बात पाठकों को बता पा रहे हैं, बल्कि जो लोग वक्त की कमी के कारण अपने चहेते लेखकों, कवियों के कार्यक्रम में नहीं पहुंच पाते थे, वे घर बैठे इस अवसर का लाभ उठा रहे हैं। पत्र-पत्रिकाएं भी ऑनलाइन उपलब्ध होने के कारण बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंच रही हैं।
बदल गए कथ्य, विषय वस्तु
युवा कहानीकार नीलम शर्मा ने हाल में कहानी लिखी लक्ष्मण रेखा । कहानी में पात्रों की दिनचर्या पूरी तरह बदली दिखाई पड़ती है। लाॅकडाउन और शारीरिक दूरी बनाए रखने की मजबूरी के बीच कहानी के पात्र मानव मन की कमजोरी को भी बखूबी दर्शाते हैं। कोरोना काल का जिक्र करते हुए कई कहानियां लगातार प्रकाशित हो रही हैं। ऑनलाइन गोष्ठियों, आलेखों में रचनाकार इस बात की पूरी संभावना जता रहे हैं कि विषय-वस्तु और कथ्य दोनों पर इस महामारी का दूरगामी प्रभाव पड़ रहा है। अब कथ्य में भीड़, सामाजिक समारोहों, प्रीति भोजों काे दर्शाने वाले दृश्यों से परहेज किया जाएगा। युवा कथाकार सिनीवाली शर्मा भी इस बात से इत्तेफाक रखती हुई बताती हैं कि इन सब चीजों को बताने के लिए ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाक्रमों का सहारा लिया जा सकता है। हालांकि यह संकटकाल लंबे समय तक नहीं टिक पाएगा, लेकिन जब तक है, तब तक इसका प्रभाव तो बना रहेगा। वरिष्ठ कथाकार भालचंद्र जोशी इस बात पर जोर देते हैं कि चाहे लोग कुछ भी लिख लें, परोक्ष रूप से उसे कोरोना की ही देना माना जाएगा। यदि पूर्व के साहित्य को देखा जाए, तो उसमें भी महामारियों को उल्लेख मिलेगा। तभी तो इस पूरे काल खंड का उल्लेख किए बगैर कुछ भी बताना संभव नहीं होगा।
फसल की तरह पकाएं कहानी
कोरोना ने हर किसी की दिनचर्या पूरी तरह से बदल दी है। कहते हैं कि साहित्य सृजन शांति में ही होता है, लेकिन सहमे हुए लोगों पर यह सन्नाटा हावी है। इसलिए कई लेखक मौन होकर संकट के गुजर जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उपन्यास, हास्य-व्यंग्य पर धारदार लेखन करने वाली सूर्यबाला भी वक्त के गुजर जाने का धैर्यपूर्वक इंतजार मुंबई के अपने घर में कर रही हैं। शिक्षा तंत्र में व्याप्त खामियां भी एक प्रकार की बीमारी की तरह होती हैं, जिनका अवलोकन वरिष्ठ साहित्यकार लगातार कई सालों तक करती रहीं। उन पर उन्होंने व्यंग्य पुस्तक लिखी अजगर करे न चाकरी। वे कहती हैं, कोरोना महामारी के कारण हमारी आदतें, दिनचर्या प्रभावित हुई हैं, तो फिर साहित्य कैसे अछूता रह सकता है? ऐसे में लेखकों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। उन्हें पूरे समाज को धैर्य का पाठ पढ़ाने में संलग्न होना पड़ेगा। इन दिनों वे इस घटनाक्रम का सूक्ष्म अवलोकन कर रही हैं। वे बताती हैं हम जैसे परिपक्व लेखकों का यह दायित्व बनता है कि हम फट से किसी विषय पर कलम नहीं चलाएं। किसी भी विषय वस्तु को फसल की तरह अपने अंदर पकने दें। पकने के बाद ही रचना सुगठित होकर निकलती है। हम इतनेनिर्मम नहीं हो सकते कि हर चीज को भुनाने की कोशिश करने लग जाएं। उनकी तरह दूसरे वरिष्ठ साहित्यकारों को भी आश्चर्य होता है कि कुछ लेखक किस तरह दनादन प्रतिक्रियाएं लिखते जा रहे हैं। लेखकों की तरह पाठकों को भी इंतजार करना होगा।
समय की भयावहता दर्शाने में सक्षम हो कथ्य
मैं उस समय तीन साल की थी, जब प्लेग फैला था। मेरी दादी अक्सर उस समय का कुछ इस तरह उल्लेख करतीं- लोग घर और कोठी छोड़कर मरैया बनाकर रहते। प्लेग के कारण दिन-रात शंकाएं मंडराती रहती थीं। गांव के गांव इंसान रहित हो गए। बड़े होने पर मैंने आपातकाल झेला, गुजरात-महाराष्ट्र का अलगाव देखा। इन सभी का छिटपुट उल्लेख कहानियों में मैंने किया है। जानकारी देती हैं वरिष्ठ साहित्यकार चित्रा मुद्गल। महान कथाकार प्रेमचंद ने कहा था-कहानियां तभी सर्वकालीन बनती हैं, जब वे आसपास के परिवेश, घटनाक्रमों पर लिखी जाएं। कथ्य समय की भयावहता का परिचय कराने में समर्थ होना चाहिए। कोरोना ने देश-समाज के चित्रण को पूरी तरह बदल दिया है, जो काफी उदास कर देने वाला है। यह उदासी चित्रा मुद्गल को भी भीतर तक कुरेद रही है। वे कहती हैं, इस तरह की महामारी ने न सिर्फ संकट से लड़ने का माद्दा प्रदान किया, बल्कि सार्थक लिखने के लिए भी प्रेरित किया। इस सार्थकता का सदुपयोग पहले भी लेखकों ने किया है। अमृतलाल नागर ने गदर के फूल और भूख उपन्यासों में कहानी में समय की भयावहता को भी प्रकट किया है। मैला आंचल में फणीश्वर नाथ रेणु खूबसूरत अंचल की राजनीतिक स्थिति को समय की सृजनात्मकता में ढालकर जीवंत बना देते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां जान सकें और सबक भी ले सकें। युवा कविता की पहचान बाबुषा कोहली की कविताएं प्रेम गिलहरी दिल अखरोट, सत्य कोयले की खदान में लगी आग है आदि में समय की पदचाप को ही अंकित किया गया है। वे बताती हैं, कोई भी बड़ी घटना कला की सभी विधाओं खासकर कविता को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। ऐसा अप्रत्याशित संकट हमारी पीढ़ी ने पहले कभी नहीं देखा था। बाबुषा के अनुसार ऐसी घटनाएं एक व्यूह के समान होती हैं, जिन्हें तुरंत पूरी तरह से नहीं देखा जा सकता है। इसलिए हड़बड़ी में रचने की बजाय रचनात्मक सृजन समय बीत जाने के बाद प्रकट होना चाहिए।
स्मिता
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