लेखक रस्किन बॉन्ड जन्मदिन
छोले-भटूरे खाकर रस्किन बॉन्ड ने मनाया जन्मदिन
स्मिता
आज बच्चों-किशोरों के चहेते व विश्वप्रसिद्ध अंग्रेजी भाषा के लेखक रस्किन बॉन्ड का जन्मदिन है। आज वे 86 वर्ष के हो गए हैं, पर वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से वे भी मसूरी के अपने घर में लॉकडाउन हैं। एक टेलिफोनिक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने जन्मदिन मनाने की योजना के बारे में बताया कि इस साल उनका कुछ भी करने का इरादा नहीं है। सभी लोगों की तरह वे घर पर ही रहेंगे। पूरा दिन वे अपने परिवार और अपनी किताबों के साथ ही समय बिताएंगे। यदि कोई आइडिया उनके मन में आएगा, तो उसे अन्य दिनों की तरह अपने नोटपैड पर जरूर लिखेंगे। रस्किन अपने को फूडी नहीं मानते हैं, लेकिन भारतीय चटपटा खाना, जैसे कि टिक्की चाट, छोले-भटूरे आदि उन्हें बहुत पसंद है। वे कहते हैं-अपने जन्मदिन पर तो मैं छोले-भटूरे ही खाऊंगा। घर से बाहर तो निकलना नहीं है, इसलिए डिनर में घर पर ही छोले-भटूरे तैयार होगा। मुझे इस तरह की चटपटी चीजें बहुत पसंद हैं।
लॉकडाउन में रस्किन बॉन्ड ने एक नायाब आइडिया निकाला। पिछले कुछ दिनों से वे ऑल इंडिया रेडियो पर बच्चों को कहानियां सुना रहे हैं। वे कहते हैं-ऑल इंडिया रेडियो में एक मिस्टर बनर्जी हैं। उन्होंने फोन कर मुझे कहानियां सुनाने को कहा। मैंने उनकी बात मान ली और अपनी कुल पंद्रह कहानियों को मैंने आवाज दी। मेरे एक हाथ में फोन का रिसीवर रहता है, तो दूसरे हाथ में किताब। मेरी आवाज को उन्होंने दिल्ली में अपने घर पर रिकॉर्ड किया और उसे फिर स्टूडियो में ट्रांसफर कर दिया। आपको जानकर काफी अच्छा लगेगा कि कहानियों पर बच्चों और पैरेंट्स से काफी अच्छा रेस्पॉन्स आया। संभव है, आगे भी कहानियां सुनाऊं। वैसे रस्किन पहले भी अपने कुछ नॉवेल को ऑडियो बुक्स में रूपांतरित करा चुके हैं।
लॉकडाउन में अपनी दिनचर्या के बारे में रस्किन बताते हैं-मेरी दिनचर्या पहले की तरह ही है। काफी सवेरे उठ जाता हूं। हां रास्ते खाली होने के कारण आजकल चिड़ियों की आमद बढ़ गई है। इसलिए उनकी तरह-तरह की आवाजें सुनने में काफी समय निकल जाता है। नाश्ते से पहले सुबह लिखने के लिए अच्छा होता है। इसलिए जो भी मेरे दिमाग में आता है, उन्हें एक-डेढ़ घंटे लिखता हूं।
रस्किन ने लॉकडाउन की मुश्किल घड़ी में भी पॉजिटिविटी ढूंढ ली है। वे कहते हैं- लॉकडाउन उन लोगों के लिए अच्छा है, जिन्हें किताबें पढ़ने की आदत है। इस समय उन किताबोें को पढ़ा जा सकता है, जिन्हें समय की कमी के कारण नहीं पढ़ा गया हो। अब तो किताबें पढ़ने के लिए लैपटॉप, किंडल आदि जैसी कई तकनीकी सुविधाएं हैं। बच्चों को अभी से एग्जाम की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए, क्योंकि स्कूल खुलते ही एग्जाम शुरू हो सकते हैं। उनके लिए यह मुश्किल घड़ी है, क्योंकि वे घर में लॉकडाउन होना नहीं चाहते हैं। उन्हें खेलने-कूदने का जरूर मन करता होगा। मेरे लिए ज्यादा मुश्किल नहीं है। मैं अब 86 वर्ष का हो गया हूं। मैं ज्यादा घूमता ही नहीं हूं। आधी से अधिक जिंदगी तो मैंने घर पर बैठकर कहानियां, किताब लिखने में निकाल दी। मुझे घर पर रहने की आदत है। यह समय पुराने दिनों में लौट जाने जैसा लग रहा है। रस्किन पुराने दिनों की याद ताजा करते हुए कहते हैं-वर्ष 1964 में मैं मसूरी रहने के लिए आया। उस समय पूरे शहर में एक-दो टैक्सी ही चलती थी और एक-दो लोगों के पास प्राइवेट गाड़ी थी। लगता है पुराने दिन दोबारा लौट आए हैं कुछ समय के लिए। लेकिन यह परिस्थिति रस्किन को दुखी भी कर देती है। उनके अनुसार, मसूरी एक टूरिसट प्लेस है। इसलिए यहां रहने वालों को बहुत नुकसान हो रहा है। दुकान, होटल और रेस्टोरेंट वालों के लिए यह समय काफी तकलीफदेह है, क्योंकि कोई टूरिस्ट नहीं आ रहे। मैं अपने जन्मदिन पर सब कुछ जल्दी ही ठीक होने की कामना करता हूं। द ब्लू अम्ब्रेला, नाइट ट्रेन एट देओली, द रूम ऑन द रूफ, अवर ट्रीज स्टिल ग्रो इन देहरा आदि उनकी कुछ लोकप्रिय किताबें हैं। अवर ट्रीज स्टिल ग्रो इन देहरा के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है। रस्किन का जन्म गुलाम भारत में हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ और वे देश आजाद होने के बाद भी भारत में ही रहे। 1964 से वे उत्तराखंड के मसूरी में रह रहे हैं।
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