अन्तर्मन का जागरण
नृत्य और कीर्तन से अन्तर्मन के जागरण का लक्ष्य
चैतन्य महाप्रभु ने अपने अंतर्मन को नृत्य-संकीर्तन और यात्राओं से जाग्रत किया और श्रीकृष्ण से खुद को एकाकार किया। प्रभु-भक्ति में लीन चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी आज भी कभी भजन गाते, तो कभी नृत्य करते या मृदंग की थाप पर झूमते नजर आ जाते हैं। कमायचे की धुन पर मीराबाई और सूरदास के भजनों को गाते मंडलियों में शामिल लोकगायक कानों में मिश्री-सा रस घोल देते हैं। इन मंडलियों में अलग-अलग प्रदेश और अलग-अलग भाषा वाले भक्त शामिल होते हैं। उनका नृत्य और गायन किसी भी व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को झंकृत करने में सक्षम होता है। नाचते-गाते प्रभु भक्त लंबी पदयात्राएं भी करते हैं। इन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि ढोल-मृदंग की थाप, भजन-कीर्तन के सुर-नाद, भारत की सभ्यता और संस्कृति में रची-बसी लोककलाएं और यात्राएं हमारे अन्तर्मन को जाग्रत करने में सक्षम हैं।
नृत्य-भजन से ईश्वर मिलन
मीराबाई के पद "मेरे तो गिरधर गोपाल' चैतन्य महाप्रभु की संकीर्तन मंडली के बीच बेहद लोकप्रिय है। वर्षों पूर्व नृत्य और भजन के माध्यम से मीराबाई ने श्रीकृष्ण को पाने का प्रयत्न किया था। किसी पद में मीराबाई ने कहा, "यदि कोई कीर्तन आपके पैरों को नृत्य करने के लिए बाध्य कर दे और आप नृत्य करते-करते शांत बैठ जाएं, तो यह परम बिंदु है। भले ही अभिव्यक्ति नृत्य के माध्यम से शुरू हुआ हो, लेकिन इसका चरमोत्कर्ष शांति है, मौन है।' यहां पर ईश्वर से जोड़ने यानी चेतना को जाग्रत करने का काम नृत्य करता है। अंतस को जगाने का माध्यम सिर्फ योग, ध्यान और साधना ही नहीं हो सकती है। नृत्य, भजन, पारंपरिक गायन, पारंपरिक संगीत (सूफी संगीत), भागवत कथाएं भी अंतस को जाग्रत करने का माध्यम बन सकती हैं। इसमें धर्म, जाति और संप्रदाय भी आड़े नहीं आ सकता है। चैतन्य महाप्रभु का एक पद है- दो तनु मिलति भए एक। जहां राधा अंग कांति प्रदान करती हैं, तो कृष्ण अंतस को जगाते हैं। स्वरूप अलग होते हुए भी राधा-कृष्ण एक ही हैं।
नाम संकीर्तन का प्रभाव
चैतन्य महाप्रभु ने कहा था कि पूजा के पारंपरिक तरीके, यज्ञ, वेदों के मर्मज्ञ बनने की बजाय यदि आप सिर्फ हरि नाम संकीर्तन करते हैं, तो अंतस शुद्ध हो जाता है। वे जब "हरे राम हरे कृष्ण' नाम संकीर्तन करते थे, तो उनके आसपास के लोग भी दोनों हाथ आसमान की तरफ उठाकर (कम्पलीट सरेंडर टू गॉड की अवस्था में) उनके साथ हो लेते थे। एक बार जब वृंदावन जाने का अवसर मिला, तो रास्ते में ऑस्ट्रिया की अमृतानंद मिल गई थीं। वे पिछले पांच वर्षों से वृंदावन में हरि नाम संकीर्तन कर रही थीं। उन्होंने बताया कि भौतिक सुखों से ऊबा हुआ मन जब अंतस को जगाने का उपाय खोजता है, तो हरि नाम संकीर्तन से बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता है। आपके मुख से निकल रहा हरि नाम जाप और आपके आसपास हो रहा संकीर्तन सुषुप्तावस्था में पड़े हुए अंतर्मन को जाग्रत करने में सक्षम है। यही नहीं, यदि व्यक्ति को भागवत कथा सुनने का अवसर मिले, तो वह इसे चूके नहीं। भागवत कथाएं जितनी पुरानी हैं, उतनी ही आज भी प्रासंगिक। रोजमर्रा की आपाधापी से जब व्यक्ति का मन अशांत हो जाए, तो कुछ समय निकालकर वह भागवत कथा सुने। ध्यान से सुनने पर उसे कथा में अपनी समस्याओं का हल भी मिलेगा।
लोककलाओं का लक्ष्य
बंगाल के कलाकार मृदंग पर थाप दें या महाराष्ट्र के लोग मजीरा पर संगत करें। कोई गायिका यदि मलयालम में सुर और ताल छेड़ दे और राजस्थान के लोक गायक वाद्य यंत्र कमायचा की स्वर लहरियाें को गुंजायमान कर दें, तो इन सभी से जो समवेत सुर प्रकट होंगे, वे व्यक्ति के चंचल मन को शांत कर अन्तर्मन से जोड़ देते हैं। बातचीत के दौरान राजस्थान के एक लोकगायक अनवर खान मांगनयार ने बताया था कि भारत की सभ्यता में रची-बसी लोककलाएं हिंदू या मुस्लिम के बाड़े में बंटी नहीं हैं। रसखान के लिखे पद श्रीकृष्ण को समर्पित हैं। वहीं सूफी गायक अहमद वारसी ने बताया था कि इबादत का तरीका और प्रार्थना की पंक्तियां भले ही अलग हों, लेकिन लक्ष्य सबका एक है। संगीत के माध्यम से खुद को जाग्रत कर ईश्वर से राब्ता कायम करना।
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