महात्मा बुद्ध के संदेश
महात्मा बुद्ध के संदेशों को आत्मसात करने का निवेदन
महात्मा बुद्ध ने तपश्चर्या कर जीवन के कठिनतम प्रश्नों का उत्तर पाया और अपने बुद्धत्व से जग को आलोकित करने का प्रयास किया। उनके इस प्रयास को मानव जाति ने कितना सफल बनाया, इसका उत्तर तो स्वयं मानव ही दे सकता है। इन्हीं मुख्य बिंदुओं पर गुजराती भाषा के लोकप्रिय उपन्यासकार दिनकर जोशी ने एक पुस्तक लिखी। यह हिंदी में बुद्ध तुम लौट आओ के रूप में अनूदित है। जीवनीपरक उपन्यास में लेखक ने बुद्ध को मौलिक दार्शनिक के रूप में स्थापित किया है। वे बताते हैं कि बुद्ध का संबंध पुराण से न होकर इतिहास से है। इसलिए उनके जीवन की समयावधि ईसा पूर्व पांचवी शती होने पर लोगों में मतभेद नहीं होना चाहिए। यह विडंबना है कि जिस भूमि में बुद्ध ने बुद्धत्व का प्रकाश पाया और उस प्रकाश को जन-जन में प्रसारित किया, उस भूमि से स्वयं बुद्ध और बौद्ध धर्म भी विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया, जबकि आज के समय में बुद्ध के संदेश सबसे अधिक प्रासंगिक हैं। इस पुस्तक में भी उनके जन्म, युवावस्था में उनका संन्यास की ओर उन्मुख होना, वन-वन भटकना, बुद्धत्व की प्राप्ति कर ध्यानस्थ होना और फिर स्वयं पाए गए ज्ञान को आम जनों तक पहुंचाने के लिए अधिक से अधिक स्थानों, नगरों के भ्रमण का वर्णन है। इसमें उनके महापरिनिर्वाण की कथा भी कही गई है। महात्मा बुद्ध ने किस तरह शरीर त्याग किया और किस तरह उनके अनुयायियों के बीच उनके शरीर को अग्नि अर्पण के लिए मतभेद हुए और सात दिनों के बाद अग्निदाह हो पाया। इसतरह राजकुमार सिद्धार्थ, शाक्य मुनि गौतम और तथागत बुद्ध के नाम से लोकप्रिय हुए महात्मा प्रकृति में विलीन हो गए। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक यह बताते हैं कि उनके संदेशों को यदि आत्मसात करने में मानव जाति अक्षम है, तो सुधी जनों को भगवान बुद्ध को ही दोबारा धरती पर लौट आने का निवेदन करना चाहिए।
पुस्तक : बुद्ध तुम लौट आओ
लेखक : दिनकर जोशी
अनुवादक : नवनीत ठक्कर
प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन, दिल्ली
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