Satuan 2025: प्रकृति के प्रति सम्मान और उन्हें संरक्षण की प्रेरणा दे रहे हैं सतुआनी, पोइला बोइशाख और जुड़ शीतल त्योहार

Satuan 2025: 14 अप्रैल को सत्तु और गुड़ वाला पर्व सतुआनी या बिसुआ देश भर में मनाया जा रहा है. वहीँ पश्चिम बंगाल और बांग्ला भाषी 15 अप्रैल को पोइला बोइशाख यानी बांग्ला नववर्ष मनाएंगे. वहीँ जीवन में शीतलता की महत्ता बताने के लिए मिथिला का लोकपर्व जुड़ शीतल भी 15 अप्रैल को मनाया जा रहा है. भारत त्योहारों का देश है. प्रकृति के प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट करने के लिए देश भर में अलग-अलग समय पर विविध पर्व-त्योहार मनाए जाते हैं. 14 अप्रैल को बिहार, झारखंड सहित देश के अन्य भागों में सतुआनी मनाया जा रहा है. इसे बिसुआ भी कहते हैं. 15 अप्रैल को पश्चिम बंगाल में ‘पोइला बोइशाख’ और मिथिला का लोकपर्व जुड़ शीतल भी मनाया जा रहा है. इस आलेख के जरिए जानते हैं इन तीनों पर्व-त्योहार (Satuan 2025) की महत्ता. सतुआनी पर्व की महत्ता (Satuan 2025 Significance) 14 अप्रैल (satuan kab hai 2025) को सुबह की शुरुआत सत्तु और गुड़ खाने से हुई है. शरीर को ठंडा रखने के लिए गर्मी के मौसम में सत्तु, गुड़, अंबिया और बेल फल का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है. इसलिए इन खाद्य पदार्थों और इन्हें प्रदान करने वाले वृक्षों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए 14 अप्रैल 2025 (Satuan 2025) को सतुआनी मनाया जा रहा है. सतुआनी मुहूर्त (Satuan 2025 Muhurt) 14 अप्रैल को सतुआनी पर्व है. सुबह 5.42 बजे सूर्योदय के बाद संक्रांति (मेष संक्रांति) का पुण्यकाल शुरू हो गया है. यह पुण्यकाल छह घंटे तक मान्य रहता है. इस दिन सत्तु, पंखा, मिट्टी का घड़ा, आम का टिकोला, गुड़, बेल, मीठे फल, द्रव्य आदि के दान का महत्व है. 'सतुआनी पर्व' (मेष संक्रांति) के अवसर पर श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में स्नान भी करते हैं. मिथिला का लोकपर्व जुड़ शीतल (Jur Sheetal 2025) वहीं 15 अप्रैल को मिथिला का लोकपर्व जुड़ शीतल (Jur Shital 2025) मनाया जायेगा. इस दिन सूर्योदय से पहले वृद्धजन अपने से छोटे को शीतल जल देकर उसे जुड़े रहने का आशीर्वाद देते हैं. भगवान की शीतल जल से पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन मान्यता है कि शीतला माता को बासी भोजन व जल अर्पित करने से वे भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. घरों के प्रमुख द्वार और अन्य जगहों पर टीका लगाने की भी मान्यता है. ऐसा माना जाता है कि शीतला माता घरों को विभिन्न रोगों से दूर रखती हैं. घर में चूल्हा की भी पूजा होती है. इस दिन घर के सभी लोग बासी भोजन ग्रहण करते हैं. इसके लिए सतुआनी की रात को ही विशेष भोजन तैयार कर लिया जाता है. बांग्ला नववर्ष है पोइला बोइशाख (Bengali New Year Pohela Boishakh 2025) 15 अप्रैल 2025 को बंगालियों का पोइला बोइशाख है. यह दिन बंगाली लोगों के लिए बांग्ला नववर्ष है. इस दिन लोगों का उत्साह चरम पर होता है. यह दिन नई शुरुआत का संकेत देता है. पोइला बोइशाख हमें संदेश देता है- अपनी विफलताओं को भुलाकर नई ऊर्जा के साथ जीवन की शुरुआत करें. पोइला बोइशाख के अवसर पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. भगवान कृष्ण और राधा की भी पूजा होती है. घरों की साफ-सफाई के साथ नए वस्त्र धारण कर भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन बंगाली व्यंजनों का आनंद लिया जाता है.

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