Apara Ekadashi 2025 : अपरा एकादशी है अचला एकादशी
अपरा एकादशी को अचला एकादशी भी कहा जाता है. यह ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को मनाई जाती है. संस्कृत में अपार का अर्थ है "असीम" आशीर्वाद. मान्यता है कि इस व्रत का पालन करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस वर्ष अपरा एकादशी 23 मई 2025 को है.
अपरा एकादशी ही अचला एकादशी (Achala Ekadashi 2025) कहलाती है. अपरा का अर्थ है अपार या अतिरिक्त. एकादशी व्रत का पालन करने से लोगों को भगवान श्रीहरि विष्णु की अपार भक्ति प्राप्त होती है. भक्ति में वृद्धि होती है. इस लाभकारी व्रत के कारण भक्तों के हृदय में भक्ति और श्रद्धा निरंतर बढ़ती जाती है. जानते हैं अपर एकादशी का समय और व्रत कथा.
अपरा एकादशी समय Apara Ekadashi Date & Time)
द्रिक पंचांग में उपलब्ध जानकारी के अनुसार,
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 23 मई 2025 को प्रातः 01:12 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - 23 मई 2025 को रात्रि 10:29 बजे
24 मई को पारण समय - प्रातः 05:26 बजे से प्रातः 08:11 बजे तक
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्ति क्षण - सायं 07:20 बजे
क्या है अपरा एकादशी की कथा (Importance of Apara Ekadashi)
एक बार श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, "हे प्रभु! ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का क्या नाम है? तथा इसका क्या महत्व है? इसमें किस देवता की पूजा की जाती है तथा इस व्रत को करने की विधि क्या है? कृपया मुझे यह सब विस्तार से बताइए." श्री कृष्ण बोले, "हे अर्जुन! ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अपरा है, क्योंकि यह अपार धन और पुण्य देने वाली है तथा सभी पापों का नाश करने वाली है. इस एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य समस्त जगत में प्रसिद्ध हो जाते हैं. अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से हत्या, दूसरों का अपमान आदि पाप नष्ट हो जाते हैं. इतना ही नहीं, व्यभिचार, झूठी गवाही, झूठे वेद पढ़ना, झूठे शास्त्र बनाना आदि पाप भी नष्ट हो जाते हैं. लोगों को गुमराह करना, तथा झूठा वैद्य बनकर लोगों को ठगना जैसे भयंकर पाप भी अपरा एकादशी के व्रत से नष्ट हो जाते हैं.
गुरु की निंदा करनेवाले को मिल सकती है सजा
ऐसा माना जाता है कि युद्ध के मैदान से भागने वाला क्षत्रिय नरक में जाता है, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से उसे स्वर्ग की प्राप्ति भी होती है. जो शिष्य गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के बाद गुरु की निंदा करते हैं, वे नरक में जाते हैं. अपरा एकादशी का व्रत करने से उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलना संभव हो जाता है. तीनों पुष्कर में स्नान करने अथवा गंगा स्नान करने से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है.
पितरों को पिंडदान करनेस्घ्ती का फल
कार्तिक मास में पितरों को पिंडदान करने से अथवा गंगा तट पर पिंडदान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है. सिंह राशि के जातकों को गुरुवार को गोमती नदी में स्नान करने से, कुंभ में श्री केदारनाथ जी के दर्शन करने से, बदरिका आश्रम में निवास करने से तथा सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है, अपरा एकादशी का व्रत करने का फल यज्ञ में हाथी, घोड़ा और स्वर्ण दान करने के समान है. गाय और भूमि दान करने का फल भी अपरा एकादशी के व्रत के बराबर है.
सूर्य के समान तेजोमय है अचला एकादशी (achala Ekadashi 2025)
यह व्रत पापरूपी वृक्षों को काटने के लिए कुल्हाड़ी के समान तथा पापरूपी अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य के समान है. अत: इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए. यह व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ है. अपरा एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक भगवान श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए. इससे अंत में विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. इस कथा को पढ़ने और सुनने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
अपरा एकादशी 2025 पारण (achala Ekadashi 2025 Paran)
पारण का अर्थ है व्रत का समापन. एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी पारण किया जाता है. द्रिक पंचांग के अनुसार, द्वादशी तिथि के भीतर पारण करना आवश्यक है यदि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए. द्वादशी के भीतर पारण न करना अपराध के समान है.
व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल
हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर के समाप्त होने का इंतजार करना चाहिए. हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है. व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है. मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए. अगर कुछ कारणों से कोई प्रातःकाल के दौरान व्रत तोड़ने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद व्रत तोड़ना चाहिए.
वैष्णव एकादशी
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है. जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन ही व्रत करना चाहिए. दूजी एकादशी व्रत सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत स्मार्त के लिए होता है तब-तब दूजी एकादशी व्रत वैष्णव एकादशी के दिन होती है. भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है.
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