भयमुक्त बनाता है यज्ञ : देवदत्त पट्टनायक

पौराणिक विषयों के जाने-माने विशेषज्ञ देवदत्त पट्टनायक अपनी किताब “शिव के सात रहस्य” में बताते हैं कि यज्ञ का महत्व पूजा-पाठ के अलावा, घरेलू जीवन में भी है. यह व्यक्ति को गृहस्थ बनाकर उसे भयमुक्त करता है. हिंदुओं के अनगिनत देवी-देवता हैं, उनमें शिव सबसे अधिक लोकप्रिय हैं. देवाधिदेव महादेव शिव, विष्णु और ब्रह्मा के साथ देवताओं के त्रिमूर्ति माने जाते हैं. शिव के अनेक रूप हैं : कहीं तो वह कैलाश पर्वत की बर्फीली चोटी पर बैठे ब्रह्मचारी योगी हैं, जो दुनिया का विनाश करने की क्षमता रखते हैं. दूसरी ओर, अपनी पत्नी और पुत्रों के साथ गृहस्थ आश्रम का आनंद लेते हुए गृहस्थी भी हैं. पौराणिक विषयों के जाने माने विशेषज्ञ देवदत्त पट्टनायक अपनी किताब “शिव के सात रहस्य” में शिवजी के बारे में बताते हुए यज्ञ की महत्ता और यज्ञ के उद्देश्य के बारे में बताते हैं. घरेलू मन का पर्याय है यज्ञ “शिव के सात रहस्य” पुस्तक में देवदत्त पट्टनायक बताते हैं कि यज्ञ का उद्देश्य अनियंत्रित प्रकृति पर नियंत्रण स्थापित करना है. उसे घरेलू बनाकर उसका उपयोग करना है. ऐसा करने पर भय से मुक्ति पाई जा सकती है. एक तरह से यज्ञ घरेलू मन का पर्याय है. इसका अर्थ है अग्नि को घरेलू कार्यों के लिए उपयोग करना और पूजन विधि से जोड़ना. गृहस्थ जीवन की शिक्षा देता है यज्ञ यज्ञ का अर्थ है पेड़-पौधों और पशुओं को मनुष्य-जीवन से जोड़ना, पूजा-पाठ इत्यादि के काम में लाना और बेकार को त्याग देना. यज्ञ मनुष्य को भी नियम-कानून तथा धार्मिक कृत्यों के द्वारा घरेलू बनाता है. जिस प्रकार धर्मकृत्यों में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका अलग-अलग है, उसी प्रकार समाज में भी उसके दायित्व और कर्तव्य अलग-अलग हैं. इस प्रकार यज्ञ जंगल को खेतों में परिवर्तित करता है, भयंकर पशुओं को पालता है और उनसे अनेक प्रकार की सेवा प्राप्त करता है. परंपरा का निर्माणकर्ता है यज्ञ पुरुष को पति और स्त्री को पत्नी बनाता है यज्ञ. मानव जाति को उनके कार्यों के अनुसार जातियों और कुलों में विभाजित कर देता है. इस प्रकार यज्ञ एक परंपरा का निर्माण करता है. पीढ़ियों तथा कर्तव्यों की परंपरा. इस कारण से ऋग्वेद ने यज्ञ को मानव समाज का केंद्रीय तत्व माना है. वह मानव समाज को एक समग्र व्यवस्था अथवा पुरुष घोषित करता है. फिर जब उसका जातियों तथा संप्रदायों में विभाजन होता है, तब यह पुरुष भी विभक्त माना जाता है. दक्ष प्रजा-पति का भय दक्ष के माध्यम से ब्रह्मा प्रकृति के नियामक और संस्कृति के निर्माता बन जाते हैं. घरेलूकरण की इस व्यवस्था के बदले यज्ञ विपुलता और सुरक्षा प्रदान करता है और भय को नष्ट करता है. भय का यह अंत किसके लिए? दक्ष प्रजा-पति हैं, जनता के स्वामी. वे पशु-पति, पाशवी वृत्तियों के स्वामी नहीं हैं. दक्ष स्वयं अपने भय को नष्ट करने का प्रयत्न नहीं करते, वे जनता को अपने इर्द-गिर्द इकट्ठा करते हैं. उनकी दृष्टि बाहर की ओर है, भीतर की ओर नहीं. प्रकृति पर नियंत्रण सुरक्षा महसूस करने के लिए वे प्रकृति पर नियंत्रण प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं. वे हरेक व्यक्ति को अपने चारों ओर इक‌ट्ठा करके घरेलू बनाना चाहते हैं. वे स्वयं अपने भ्रमों से सवाल जवाब करने को तैयार नहीं हैं, जिससे उनका भय बढ़ता ही है. वे, जंगल के सिंह की तरह, जो अपनी सिंहनी पर नियन्त्रण करने केलिए शक्ति का इस्तेमाल करता है, घोर पुरुष है. वे पशु हैं.

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