लट्टू की तरह एकाग्रचित्त होकर गति बनाने से मिलती है सफलता - श्रीराम शर्मा आचार्य

अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार, सफल जीवन का आधार है व्यक्ति की एकाग्रता. जिस तरह लट्टू जब तक उचित गति बनाये रखता है, अपनी धुरी पर एकाग्र होकर घूमता रहता है. निर्धारित गति के घटते ही वह डगमगा जाता है और कुछ क्षणों में धराशायी हो जाता है. श्रीराम शर्मा आचार्य ने अपने प्रवचन में बताया था कि एकाग्रता के महत्त्व को साधारण गतिविधियों से भी भली-भांति समझा जा सकता है। सूर्य की किरणें सारी पृथ्वी पर फैली रहती हैं, कहीं कोई गड़बड़ नहीं होती, किन्तु आतिशी शीशे की सहायता से किरणों को एक बिंदु पर एकाग्र कर दिया जाता है. इससे इतनी ऊर्जा एकत्रित होती है कि कपड़ा, कागज या पत्ता जलने लगता है. रस्से की सहायता से बड़ा वजनी सामान सैकड़ों मजदूरों की सहायता से जब खींचा जाता है, तो शक्ति को एकाग्र करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया की जाती है. जोर लगा के-होइशा आदि आवाज के माध्यम से सभी मजदूर एक साथ अपनी शक्ति को रस्से पर एकाग्र करते हैं यदि उतने मजदूरों की शक्ति एकाग्र न हुई, तो कार्य कठिन हो जाता है. आध्यात्मिक-भौतिक जीवन में सफलता किसी भी व्यक्ति को समस्त आध्यात्मिक क्रियाओं, योग-साधानाओं या किसी इच्छित लक्ष्य को प्राप्त करने का उद्देश्य हो सकता है. इन सबके लिए मन की एकाग्रता को बढ़ाना आवश्यक है. एकाग्रता केवल सोच लेने आध्यात्मिक-भौतिक जीवन में आशातीत सफलता मात्र से नहीं, वरन् धीरे-धीरे व नियमित रूप से पहल करने से बढ़ती है. मनुष्य का एकाग्र मन उसकी उन्नति में सबसे अधिक सहायक है. यदि इसे एकाग्र कर लिया जाये तो प्रत्येक मनोवांछित आध्यात्मिक-भौतिक जीवन में आशातीत सफलता पायी जा सकती है. सांसारिक मोह से बनाएं दूरी ऊपर से देखने पर एकाग्रता हासिल करने की प्रक्रिया बड़ी कठिन और कष्टकारक लगती है, लेकिन दैनिक जीवन के सामान्य क्रिया-कलापों से यह कितनी संबंधित है, यह न जान पाने के कारण लोग बड़े लाभ से वंचित रह जाते हैं. दैनिक जीवन में जाने-अनजाने हो रही सामान्य गलतियों को सुधार कर जीवन में आमूल-चलू परिवर्तन किया जा सकता है. श्रीराम शर्मा आचार्य जी की प्रेरणायें बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं. वे कहते हैं- एकाग्रता में सबसे आवश्यक तत्व यह है कि सांसारिक झंझट संबंधी बातों का बहुत कम और जहां तक बन सके, याद न रखा जाय. चिंतन में लगाएं समय यथा संभव जासूसी कहानियों, फिल्मी कहानियों की पत्र-पत्रिका न पढ़ी जाये। बातें भी अधिक न की जाये, तो और भी अच्छा. अपने सारे विचार अपने ध्येय चिंतन में ही लगाये रखें. घर, परिवार, मुहल्ले, समाज, जाति, बिरादरी की उलझनों में जितना फंसेंगे, उतना ही मन अस्त-व्यस्त और विचलित होगा. हमारा मन सदैव छिन्न-भिन्न रहेगा और हमें एकाग्रता प्राप्त नहीं होगी. श्रेष्ठ जीवन का लक्षण हमें केवल मन को एकाग्र करने की ही आवश्यकता नहीं है, बल्कि आंखों, कानों के कार्यों पर भी अधिकार रखने की आवश्यकता है. इन सबमें मन का वास होता है. ध्यान देकर दूसरों की बातों को सुनने की अपेक्षा एकाग्रता बढ़ाने का इसके सिवाय कोई दूसरा सुगम साधन नहीं है. स्थायी महत्व और क्षणिक लाभ का जीवन में अंतर समझना और स्थायी तत्त्वों पर एकाग्र करना ही श्रेष्ठ जीवन का लक्षण है. इसके अलावा, पूजा- उपासना, साधना-स्वाध्याय, यौगिक क्रिया, संगीत आदि अनेक माध्यमों से अपनी एकाग्रता को बढ़ाया जा सकता है. व्यस्त रहें मस्त रहें व्यस्त रहें मस्त रहें के सूत्र को चरितार्थ करने से निरर्थक बातों से छुटकारा मिलता है, चिंतन को सही दिशा मिलती है. इससे हमारी एकाग्रता बढ़ती है. लट्टू जब तक उचित गति बनाये रखता है, अपनी धुरी पर एकाग्र होकर घूमता रहता है. निर्धारित गति मर्यादा के घटते ही वह डगमगा जाता है और कुछ क्षणों में ही धराशायी हो जाता है. अधिकाधिक जानकारियां एकत्रित करने की आकांक्षा रखने मात्र तक सीमित न रहकर उन्हें अपने जीवन विकास में नियोजित करने के लिए एकाग्रचित्त होने का अधिक प्रयास करना चाहिए.

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