स्वयं में बदलाव लाने में छिपा है जीवन का सूत्र, बीके शिवानी
आध्यात्मिक वक्ता और विचारक बीके शिवानी बताती हैं कि सकारात्मक जीवन जीने के लिए स्वयं में बदलाव लाना पड़ता है. इसके लिए दिन की शुरुआत इस संकल्प के साथ करना चाहिए कि मैं एक शांत आत्मा हूं और ईश्वर ने मुझे अपना और दूसरों का खयाल रखने के लिए धरती पर भेजा है.
हम दूसरों की बातों पर दुखी होते हैं. हम क्रोध करते हैं. हम सोचते हैं कि क्रोध करने से काम बन जाता है, जबकि होता इसका उल्टा है. क्रोध से काम बनने की बजाय और बिगड़ जाता है. क्रोध त्यागने से जीवन में सब कुछ अच्छा हो जाता है. आध्यात्मिक वक्ता और विचारक बीके शिवानी के अनुसार, खुद का और दूसरों का भी खयाल रखना हमारी ज़िम्मेदारी है. डॉक्टर दवा से बीमारी को ठीक करते हैं. जब हम बहुत अच्छे हीलर होते हैं, तो हमारी वाइब्रेशन दवा से पहले ही ठीक कर देती है. इसलिए खुद में सकारात्मक बदलाव लाएं.
सकारात्मक संकल्प के साथ करें दिन की शुरुआत
हर सुबह एक विचार बनाएं. दिन की शुरुआत इस संकल्प के साथ करें कि मैं एक शांत आत्मा हूं, मैं भगवान का फरिश्ता हूं. हर दिन हर घंटे के बाद खुद को याद दिलायें कि मैं भगवान का साधन हूं. जैसे ही हम भगवान को याद करते हैं, उनके वाइब्रेशन हमारा हिस्सा बन जाते हैं. हम जिसे याद करते हैं, हमारी मनःस्थिति, हमारा ऊर्जा क्षेत्र उस व्यक्ति से जुड़ जाता है. यदि आप भगवान को एक पल के लिए भी याद करते हैं, तो उनसे संबंध स्थापित हो जाएगा.
दूसरे के बारे में सोचना ऊर्जा और समय की बर्बादी
अगर आप किसी भी चीज़ को ठीक करना चाहते हैं, तो सबसे पहले बीमारी का पता लगाना ज़रूरी है. रिश्तों में कौन सी छोटी-छोटी चीजों से समस्याएं आती हैं? अहंकार, अपेक्षा, किसी की बात का चोट लगना, संवादहीनता, ईर्ष्या, स्वभाव में बेमेलता, विश्वास की कमी आदि. जब हम ये सब शब्द बोल रहे होते हैं, तो क्या हम अपने बारे में बात कर रहे होते हैं या किसी और के? किसी और के बारे में सोचना ऊर्जा और समय की बर्बादी है. अगर जांच करनी भी है, तो पहले अपने बारे में करें.
खुद से करें सवाल
खुद से पूछें कि इसे ठीक करने के लिए मैं अपने आप में क्या बदलाव ला सकता हूं? हममें से ज्यादातर लोगों को लगता है कि कभी-कभी हमारा स्वभाव किसी और से मेल नहीं खाता? जब स्वभाव ही मेल नहीं खाता, तो गलतफ़हमियां पैदा होंगी. हम किसी को देखकर कहते हैं कि उसके संस्कार हमसे बिलकुल अलग हैं. हम उनसे कहते हैं कि हम आपको नहीं समझ सकते. वे भी कहते हैं कि मैं भी आपको नहीं समझ सकता. हमें लगता है कि रिश्ता तभी अच्छा रहेगा जब दोनों का स्वभाव एक जैसा होगा.
दूसरे लोगों की बजाय अपने बारे में सोचें
जरा सोचिए, एक दिन सुबह दोनों उठें, एक जैसा सोचें, एक जैसा बोलें, एक जैसा करें, दोनों में कुछ भी अलग न हो, तो ज़िंदगी कैसी होगी! बोरिंग हो जाएगी. अगर एक जैसा है तो बोरिंग है और अगर अलग है तो परेशानी है. अब इन दोनों में से हमें क्या चुनना चाहिए? हम उम्मीद करते हैं कि सामने वाला भी बिल्कुल हमारे जैसा ही सोचे, बोले और करे. न कम करे, न ज़्यादा. असल में जब खुद को जान लेंगे कि मैं आत्मा हूं, तो इससे हर समस्या हल हो जाती है.
एक बात और समझ आएगी कि आत्मा आज इस शरीर में है, इससे पहले किसी और शरीर में थी, उससे पहले किसी और शरीर में रही होगी, फिर हम दूसरे के बारे में अधिक नहीं सोचेंगे. इसलिए दूसरे के बारे में सोचने की बजाय स्वयं के बारे में सोचें. इससे जीवन में सकारात्मक बदलाव आएगा.
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