समस्या से समाधान की ओर ले जाता है योग: श्री श्री रविशंकर

योग मन को स्वतंत्र कर देता है. यह आपको तनाव मुक्त कर देता है. यह हर दिशा में सहजता से समाधान तलाशने में मदद करता है. योग हमें और अधिक जिम्मेदार बनाता है. इस विषय पर जानें आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के विचार. योग सभी समस्याओं को खत्म कर सकता है. आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के अनुसार, योग के प्रणेता पतंजलि ने योग को परिभाषित करते हुए कहा है कि, ‘‘योग का मकसद ही है कि दुख आए इससे पहले ही वह खत्म हो जाए.’’ गुस्सा, ईष्र्या, कुंठा, घृणा सभी को समाहित कर नवजीवन की ओर बढ़ना ही योग है. आपने देखा होगा कि जब आप प्रसन्न होते हैं तो आप स्वयं को तनाव मुक्त महसूस करते हैं. जब बेईज्जत या असफल होते हैं, तो आपके अंदर कुछ दरकता हुआ महसूस होता है, हम सिकुडने लगते हैं. योग हमारे अंदर जो भी है सिकुड़ने या फैलने की घटना घट रही है उसका साक्षी बनाता है. जिम्मेदार बनाता है योग हम अपनी नकारात्मक भावनाओं के प्रति बहुत ही असहाय महसूस करते हैं. कभी भी स्कूल या घर पर किसी ने नहीं सिखाया कि इन नकारात्मक भावनाओं पर कैसे विजय पाई जाए. यदि आप परेशान हैं, तो या तो परेशान रहना होता है या फिर समय का इंतजार करना होता है. योग में वह रहस्य है, जो आपको इसके लिए तैयार कर सकता है. यह आपके मन को स्वतंत्र कर देता है. यह इस तरह से आपका निर्माण कर देता है कि जिस दिशा में आप सोचना चाहें वह आप सहजता से कर सकते हैं. यह व्यक्ति को और अधिक जिम्मेदार बनाता है. यह कर्म योग कहलाता है. उर्जा व उत्साह देता है योग हम अपने जीवन में कई चरित्र निभाते हैं. हमारे पास यह विकल्प है कि हम उसे योगी की तरह बिताएं याफिर बगैर योगी बने बिताएं. एक शिक्षक या एक डाक्टर या फिर व्यवसायी सभी जिम्मेदार हो सकते हैं. एक दूसरे की देखभाल करना, मिलकर रहना और जिम्मदारियां उठाना सब कुछ योग के माध्यम से संभव है. संपूर्ण मानवजाति के पास यह विरासत है. बस हमें इसे आगे बढ़ाना है. योग से उर्जा में बढ़ोतरी और उत्साह का जन्म होता है. यही हमें अधिक जिम्मेदारियां लेने के लिए प्रेरित करता है. जब आप थके और तनाव से भरपूर रहते हैं तब आप जिम्मेदारियां उठाने के लिए उत्सुक रहते हैं? नहीं. यदि आपके पास उर्जा व उत्साह है, तो आप जिम्मेदारियां उठा सकते हैं. यह आपको बोझ भी नहीं लगेगा. यह योग के कारण संभव है. ध्यान दें सांसों पर विज्ञान एक व्यवस्थित और तार्किक समझ का पर्याय है. इसीलिए योग भी एक विज्ञान है. यह जानना कि ‘‘यह क्या है’’ विज्ञान है और ‘‘मैं कौन हूं’’ आध्यात्म है. लेकिन, दोनों ही विज्ञान हैं. योग का समस्त विज्ञान योगी और बच्चे में जरूर होता है. बच्चे सोते समय ‘चिन’ मुद्रा बनाते हैं. विश्व के हर बच्चे में आप देखेंगे कि लेटते हैं तो पहते पैर उठाते हैं और फिर कंधे, कोबरा सर्प की तरह रखते हैं. आपको एक योग शिक्षक की आवश्यकता नहीं होगी यदि आप एक बच्चे को देखेंगे. जिस प्रकार बच्चे सांस लेते हैं वह वयस्क लोगों से अलग होता है. यह सांस ही है जो शरीर और भावनाओं के मध्य सेतु का कार्य करती है. यदि हम सांस पर ध्यान दें तो हम अपनी भावनाओं को भी नियंत्रित कर सकते हैं नकारात्मकता से भी दूर रह सकते हैं. एक योगी होने की निशानी है कि हम फिर से एक बच्चा बन जाएं.

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