खुद की आलोचना करते रहने की आदत से उबरना है जरूरी

खुद की आलोचना या आत्म-आलोचना खुद में हमेशा दोष ढूंढने के लिए विवश करती है। यदि आप लगातार आत्म आलोचना में डूबी रहती हैं, तो यह कई तरह की मानसिक समस्या का कारण बन सकती है। विशेषज्ञ इससे उबरने के कई उपाय बताते हैं। ‘सेमिनार में मेरी प्रस्तुति बहुत खराब रही। मैं इस जॉब के लिए उपयुक्त नहीं हूं। उस दिन के विवाह समारोह में सबसे बुरी मैं दिख रही थी।’ अकसर हम अपनी आलोचना अपने-आपसे या दूसरों से करने लग जाते हैं। अपना सही मूल्यांकन करना तो वाजिब है, लेकिन हर हमेशा खुद की शिकायत करते रहना कहीं से भी सही नहीं है। मनोविज्ञान खुद की शिकायत करने की आदत को सेल्फ क्रिटिसिज्म यानी आत्म-आलोचना कहता है। महान संत कबीरदास का दोहा ‘बुरा जो देखन मैं चली... खुद को सही रास्ते पर ले जाने के लिए तो ठीक है, लेकिन सेल्फ क्रिटिसिज्म को अपनी आदत में शुमार कर लेना कहीं से भी उचित नहीं है। विशेषज्ञ बताते हैं कि खुद की आलोचना करते रहने की आदत मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर देते हैं। क्या है खुद की आलोचना या आत्म-आलोचना? सीनियर साइकोलोजिस्ट डॉ. ईशा सिंह बताती हैं, ‘खुद की आलोचना या आत्म-आलोचना एक तरह की खुद का कठोरता के साथ मूल्यांकन करने की प्रवृत्ति है। आत्म-आलोचना करने वाले व्यक्ति असफलता और दूसरे लोगों द्वारा अस्वीकार किए जाने से बहुत डरते हैं। किसी न किसी बात को लेकर वे हमेशा अपराधबोध से ग्रस्त रहते हैं। उन्हें लोगों के साथ सामाजिक संबंध बनाने में भी बहुत अधिक कठिनाई होती है। क्यों पनपती है आत्म-आलोचना की प्रवृत्ति ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की स्टडी बताती है कि 90 प्रतिशत मामलों में आत्म-आलोचना करने की आदत बचपन में ही पनप जाती है। जिन बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों से कम प्यार करते हैं, बच्चों की गलतियों पर बहुत अधिक डांटते-फटकारते हैं, ऐसे बच्चे बड़े होकर सेल्फ क्रिटिक यानी आत्म आलोचक बन जाते हैं। रिश्तों के बीच देखभाल और बॉन्डिंग की कमी मुख्य रूप से इसके कारण बनते हैं। साथ ही यदि कोई व्यक्ति दुर्व्यवहार या किसी प्रकार का सदमा झेल चुका है, उसमें भी आत्म-आलोचना की प्रवृत्ति पनप सकती है। मेंटल हेल्थ को प्रभावित कर देती है खुद की आलोचना यदि आप बार-बार सेल्फ-क्रिटिसिज्म करती हैं, तब आप खुद को यह विश्वास दिलाने लगती हैं कि आप अच्छी नहीं हैं, आप किसी भी क्षेत्र या चीज़ में सफल नहीं हो सकती हैं। आप खुद को हर चीज के लिए दोषी मानने लग जाती हैं। बार-बार आत्म-आलोचना करने के कारण आप खुद की तुलना दूसरों से करने लगती हैं, जो अक्सर बुरा परिणाम देने वाला साबित होता है। जब आप पीछे मुड़कर देखती हैं, तो पाती हैं कि आत्म-आलोचना और नकारात्मक विचारों ने आपके व्यक्तिगत विकास को भी प्रभावित कर दिया है। यह आपके दिमाग पर बहुत गहरे असर कर चुका है। लगातार आत्म-आलोचना आत्म-सम्मान और आत्म विश्वास में बहुत अधिक कमी, घबराहट और अवसाद का कारण बन जाती है। यह अपराधबोध, बहुत अधिक शर्म महसूस करना, नकारापन और हर काम में असफल होने की चिंता जैसी नकारात्मक भावनाओं से भी जुड़ा हुआ है। लगातार नकारात्मक आलोचना खुद पर संदेह करने के लिए विवश करती है और कई मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण भी बन जाती है। इससे तनाव बढ़ सकता है और आप अकेलापन और डिप्रेशन की शिकार हो सकती हैं। इसके कारण आपकी कार्य क्षमता भी घट सकती है। आत्म आलोचना से छुटकारा पाने के विशेषज्ञ के बताए उपाय 1. आत्म आलोचना ट्रिगर के बारे में जागरूक बनें डॉ. ईशा बताती हैं, ‘मन में खुद की आलोचना करने के विचार अचानक तो नहीं आ सकते हैं। कुछ ख़ास प्रकार के विचार ट्रिगर का काम करते हैं, जो नकारात्मक आत्म-चर्चा की ओर ले जाते हैं। उन ट्रिगर की पहचान करनी होगी। उदाहरण के लिए यदि आप किसी का गलत नाम पुकार लेती हैं और उसी वक्त कोई आपकी गलती की तरफ इशारा कर देता है, तो आप शर्मिंदा होने के साथ-साथ ‘आपने ऐसा क्यों किया’-इस विषय पर मन ही मन मंथन करने लग जाती हैं। इस छोटी सी चूक के लिए खुद को कोसने लग जाती हैं या खुद का अपमान करने लग जाती हैं फिर आगे यह आपको सेल्फ क्रिटिसिज्म के अंधे कुएं की तरफ ढकेलने लगता है। जैसे ही आपको अपनी किसी गलती पर खुद को कोसने या अपमान करने की नौबत आये, तो समझ लें ये विचार ट्रिगर का काम कर रहे हैं। उन नकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय अपने ध्यान को दूसरी तरफ ले जाएं। यह स्वीकार करें कि आपकी जैसी गलती कोई दूसरा व्यक्ति भी कर सकता है। आपने कोई बड़ी गलती नहीं की है। 2 आत्म आलोचना को पराजित करने की कोशिश करें यदि किसी गलती पर आप मन ही मन खुद को कोसने लगती हैं, तो दूसरी तरफ इस नकारात्मक विचार को पराजित करने की भी कोशिश करें। गलतियों को स्वीकार जरूर करें, लेकिन खुद से यह संवाद भी करें कि गलतियों को सुधारा जा सकता है। आगे से ऐसा नहीं होगा। खुद को यह चुनौती दें कि इस नकारात्मक विचार को आप खत्म कर सकती हैं। यदि खुद की आलोचना करने की आदत आपको सबसे बुरा घोषित करती है, तो दूसरे पल आप खुद से यह संवाद करें कि आप बुरी हैं, लेकिन आपमें बहुत सारी खूबियां भी हैं, जो दूसरों में नहीं हैं। आप अपनी उन खूबियों को याद करने लगें। धीरे-धीरे आप पाएंगी कि आपकी आत्म-आलोचना की आदत पराजित हो रही है। ध्यान दें कि अति आत्मविश्वास का शिकार होना सही नहीं है, लेकिन आत्मविश्वास और स्वाभिमान को बनाए रखना अच्छे व्यक्तित्व के लिए सबसे अधिक जरूरी है। 3 खुद के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव विकसित करें डॉ. ईशा सिंह के अनुसार, जब हम खुद से प्रेम करना छोड़ देते हैं या खुद के प्रति सम्मान दिखाना बंद करते हैं, तो खुद अपनी आलोचना करने लग जाते हैं। हममें कमी हो सकती है, लेकिन कमियों के लिए खुद को बेरहमी से आंकने और आलोचना करने की बजाय खुद के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव विकसित करें। खुद को एक इंसान के रूप में अपने सकारात्मक गुणों और मूल्यों की याद दिलायें। गलतियों और असफलताओं के लिए खुद को क्षमा करें। आत्म-प्रेम और आत्म-सम्मान का अर्थ है कि व्यक्तिगत कमियों के लिए खुद को दोषी समझने की बजाय उन्हें दूर करने की कोशिश करना। खुद के प्रति प्रेम और सम्मान का दृष्टिकोण अपनाकर बेहतर तरीके से आत्म-आलोचना से निपटा जा सकता है। 4 स्वयं में सुधार लाने की कोशिश करें व्यक्ति अपनी आलोचना तभी करने लग जाता है जब वह लोगों के बीच जाता है, सामाजिक कार्यों में भाग लेता है, क्योंकि आत्मविश्वास की कमी के कारण वह लोगों के बीच न चाहते हुए भी गलतियां करता है। इसलिए लोगों से कटने की बजाय बार-बार लोगों के बीच जाएं। लोगों के बीच जाने से आपकी झिझक मिटेगी और आपमें आत्मविश्वास आएगा। आप लोगों के बीच अपनी खासियत को भी प्रदर्शित कर पाएंगी। इससे आपसे गलतियां कम होंगी और आत्म आलोचना की प्रवृत्ति भी छूटती चली जाएगी। 5 नियमित रूप से करें ध्यान ध्यान ज्यादातर मर्ज की दवा है। ध्यान मानसिक शांति प्रदान कर आत्म-जागरूकता, करुणा और स्वीकृति को बढ़ाता है। यह आत्म-आलोचना पर काबू पाने में मददगार साबित हो सकता है। माइंडफुलनेस और प्रेमपूर्ण-दया ध्यान का अभ्यास करके व्यक्ति बिना किसी निर्णय के अपने विचारों का निरीक्षण करना सीख सकता है। यह आपको नकारात्मक आत्म-चर्चा से अलग कर सकता है। नियमित रूप से ध्यान करने पर आप सकारात्मक रूप से स्वयं से बातचीत कर सकती हैं और अपने व्यक्तित्व का निरीक्षण भी।

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