ध्यान अंतर्मन को प्रकाशित करता है: संत राजिंदर सिंह महाराज

संत राजिंदर सिंह महाराज के अनुसार, ध्यान आत्म-जागरूक बनाता है. परमात्मा की शक्ति से गहरा संबंध स्थापित हो पाता है. यह अंतर्मन को प्रकाशित करता है. इससे कई अन्य आध्यात्मिक लाभ भी मिलते हैं. ध्यान से कई आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं. संत राजिंदर सिंह महाराज के अनुसार, ध्यान आत्म-जागरूक बनाता है. इससे खुद से और परमात्मा की शक्ति से गहरा संबंध स्थापित हो पाता है. शांति और कल्याण की भावना प्रबल होती है. यह विचारों, भावनाओं और दृष्टिकोणों में सकारात्मक बदलाव भी ला सकता है, जिससे अधिक सामंजस्यपूर्ण और पूर्ण जीवन को बढ़ावा मिलता है. इस विषय पर संत राजिंदर सिंह महाराज के विचार गहराई से जानते हैं. प्रार्थना का सर्वोच्च रूप है ध्यान संत राजिंदर सिंह महाराज के अनुसार, ध्यान वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने भीतर मौजूद प्रेम, शांति और स्थिरता का अनुभव करते हैं. यह हमारे ध्यान को बाहरी दुनिया से हटाकर अपने भीतर केंद्रित करके ईश्वर के प्रेम का अनुभव करने की प्रक्रिया है. ऐसा करने से हम अपने आस-पास की उथल-पुथल से ध्यान हटाकर सभी प्रेम, सभी आनंद के स्रोत, जो ईश्वर हैं, से जुड़ पाते हैं. ध्यान प्रार्थना का सर्वोच्च रूप है और यह हमारे भीतर मौजूद अप्रयुक्त प्रेम के भंडार के द्वार खोलता है. ध्यान वह साधन है जिसके द्वारा आत्मा ईश्वर के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करती है. ईश्वर के आंतरिक प्रकाश का अनुभव (Inner Light) संत राजिंदर सिंह जी महाराज के अनुसार, साइंस ऑफ़ स्पिरिचुअलिटी में सिखाई जाने वाली ध्यान की तकनीक है एसओएस ध्यान. यह ईश्वर के आंतरिक प्रकाश का अनुभव करने पर केंद्रित है. इसे एक विज्ञान के रूप में पढ़ाया जाता है, जिसका अभ्यास कोई भी व्यक्ति कर सकता है, चाहे उसकी उम्र, आस्था या विश्वास कुछ भी हो। ध्यान के इस रूप में ध्यान आध्यात्मिक आंख या आत्मा के आसन पर केंद्रित होता है. यह दोनों भौंहों के बीच और पीछे होता है. आत्मा का यह स्थान आंतरिक आध्यात्मिक क्षेत्रों का प्रवेशद्वार है. जैसे-जैसे हमारी संवेदी धारायें इस बिंदु तक उठती हैं और वहाँ केंद्रित होती हैं, यह आंतरिक क्षेत्रों में खुलती हैं. इसकी प्रकृति आध्यात्मिक है. ध्यान का असली उद्देश्य अपने आध्यात्मिक सार से जुड़ना (Aim of Meditation) ध्यान का असली उद्देश्य अपने आध्यात्मिक सार से जुड़ना और ईश्वर के प्रेम का अनुभव करना है. इससे आंतरिक शांति और खुद और ईश्वर की गहरी समझ प्राप्त होती है. ध्यान शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक लाभ प्रदान करता है. इन्हें आध्यात्मिक परिवर्तन के रूप में देखा जाता है. ध्यान के दौरान अंदर की ओर ध्यान केंद्रित करके, व्यक्ति अपने भीतर छिपी आध्यात्मिक ऊर्जा का दोहन कर सकते हैं. अपने आंतरिक देवत्व के साथ एक गहन संबंध का अनुभव कर सकते हैं, जिससे अंततः पूर्णता और कल्याण की भावना पैदा होती है।

Comments

Popular posts from this blog

Sri Sri Ravi Shankar: गलतियों से सीखकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें विद्यार्थी

Buddha Purnima 2025: आध्यात्मिक चिंतन का दिन है बुद्ध पूर्णिमा

Lord Hanuman: क्यों हनुमानजी चिरंजीवी देवता कहलाते हैं