Chhinnamasta Jayanti 2025: देवी छिन्नमस्ता जयंती वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को मनाई जाती है. इस वर्ष यह तिथि रविवार, 11 मई 2025 को है. देवी छिन्नमस्ता दस महाविद्या देवियों में से छठी हैं और काली कुल से संबंधित हैं. देवी छिन्नमस्ता शिव की शक्ति हैं. जानते हैं देवी छिन्नमस्ता जयंती कथा.
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, देवी छिन्नमस्ता जयंती वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को मनाई जाती है. देवी छिन्नमस्ता दस महाविद्या देवियों में से छठी हैं और काली कुल से संबंधित हैं. शिव की शक्ति मानी जाती हैं देवी. देवी छिन्नमस्ता को देवी प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है. द्रिक पंचांग में दिए गए उल्लेख के अनुसार, देवी छिन्नमस्ता को भयावह रूप में दर्शाया जाता है. यही कारण है कि इनकी पूजा मुख्य रूप से तांत्रिक, योगी और अघोरियों द्वारा की जाती है. हालांकि आम लोग भी खुद को विभिन्न प्रकार की आपदाओं से बचाने के लिए देवी छिन्नमस्ता की पूजा (Chhinnamasta Jayanti 2025) करते हैं.
कब से कब तक है चतुर्दशी तिथि और जयंती (Chhinnamasta Jayanti date & Time
द्रिक पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि प्रारंभ - 10 मई 2025 को शाम 05:29 बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त - 11 मई 2025 को शाम 08:01 बजे
देवी छिन्नमस्ता की साधना (Chhinnamasta Puja 2025)
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, पृथ्वी पर अपराध लगातार बढ़ रहे हैं. जिस समय अपराध की वृद्धि अधिक होती है, मान्यता है कि उस समय देवी भुवनेश्वरी प्रकट होती हैं. छिन्नमस्ता तंत्र शास्त्र के अनुसार, भगवान परशुराम ने भी श्री छिन्नमस्ता विद्या की उपासना की थी. देवी छिन्नमस्ता की पूजा नाथ पंथी लोग भी करते हैं. स्वयं गुरु गोरखनाथ भी देवी छिन्नमस्ता के उपासक थे. देवी छिन्नमस्ता का संबंध भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार से माना जाता है. द्रिक पंचांग के अनुसार, देवी छिन्नमस्ता की साधना केवल योग्य साधकों के लिए ही बताई गई है. देवी छिन्नमस्ता की पूजा करने से व्यक्ति जीव भाव से मुक्त हो जाता है और शिव भाव को प्राप्त करता है. इसलिए व्यक्ति सभी प्रकार के सांसारिक भावनात्मक बंधनों से अलग हो जाता है और भगवान के परम आनंद का अनुभव करता है. देवी छिन्नमस्ता अंतर्मुखी साधना का संदेश देती हैं. उनके दो साथी रज और तम का रूप हैं. देवी छिन्नमस्ता की पूजा शाक्त, बौद्ध और जैन संप्रदाय के अनुयायी करते हैं.
क्या है छिन्नमस्ता जयंती कथा (Chhinnamasta Jayanti Katha )
हिरण्यकश्यप और वैरोचन देवी के उपासक थे, इसलिए देवी को वज्र वैरोचनी के रूप में भी पूजा जाता है. देवी एक बार की बात है. देवी पार्वती अपनी दो सखियों डाकिनी (जया) और वर्णिनी (विजया) के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने पहुंचीं. स्नान करने के बाद, वह क्षुदग्नि (भूख) के प्रभाव से काली हो गईं. उसी समय जया-विजया ने भी माता पार्वती से भोजन प्रदान करने की प्रार्थना की. देवी पार्वती ने दोनों सखियों को कुछ समय प्रतीक्षा करने के लिए कहा. कुछ समय प्रतीक्षा करने के बाद जया-विजया को भूख लगने लगी और उन्होंने फिर से मां पार्वती से भोजन प्रदान करने का आग्रह किया और कहा, ‘मां, हमें भोजन दो! आप पूरे संसार की मां हैं, और शिशु हमेशा मां से ही सब कुछ मांगता है. इसलिए हम भी अपनी भूख मिटाने के लिए भोजन की भीख मांग रहे हैं.’
सखियों के लिए सिर काटा
मां पार्वती ने उन दोनों से कहा, ‘तुम दोनों के घर पहुंचते ही मैं तुम्हारे लिए भोजन की व्यवस्था कर दूंगी।‘ मां पार्वती के वचन सुनकर डाकिनी और वर्णिनी सखियों ने देवी मां से विनती करते हुए मधुर वाणी में कहा, ‘हे मां! जगदम्बे! माता अपने शिशुओं को भूख लगने पर तुरंत भोजन करा देती हैं, हम लोग भूख के कारण बहुत व्याकुल हो रहे हैं. कृपया हमें कुछ ऐसा भोजन प्रदान करें, जिससे हमारी भूख मिट सके.‘ अपनी सखियों के विनम्र वचन सुनकर देवी पार्वती ने तुरंत अपने नाखून की नोक से अपना सिर काट दिया. देवी का कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गया और धड़ से रक्त की तीन धारा बहने लगीं. देवी ने रक्त की दो धारा अपनी सखियों की ओर प्रवाहित कीं, तीसरी धारा देवी ने स्वयं अपने बाएं हाथ में कटे हुए सिर को लेकर पीना शुरू कर दिया. यह पूरी घटना बहुत ही गुप्त तरीके से घटित हुई और उसी समय से वे सभी लोकों में देवी छिन्नमस्ता के नाम से विख्यात हुईं.
छिन्नमस्ता साधना (Chhinnamasta Sadhna)
छिन्नमस्ता साधना बेहद कठिन है. यह तांत्रिकों, योगियों और संसार त्यागियों तक ही सीमित है. छिन्नमस्ता साधना शत्रु नाश के लिए की जाती है. अदालती मामलों से छुटकारा पाने, सरकारी कृपा पाने, व्यापार में मजबूती पाने और अच्छा स्वास्थ्य पाने के लिए उनकी पूजा की जाती है.
छिन्नमस्ता मूल मंत्र (Chhinnamasta Mantra)
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनयै हूं हूं फट् स्वाहा॥
Sri Sri Ravi Shankar: गलतियों से सीखकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें विद्यार्थी
10 वीं और 12 वीं के परीक्षा परिणाम आने पर संभवतः कुछ छात्र बेहद खुश होंगे, तो कुछ निराश भी. आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर (Sri Sri Ravi Shankar) के अनुसार, ने बताया है कि असफलता पाने पर दुख के सागर में गोते लगाने की बजाय गलतियों से सीखकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए. 10 वीं और 12 वीं के परीक्षा परिणाम आने वाले होंगे या आ चुके होंगे. कुछ छात्रों को अपने मन-मुताबिक़ परिणाम मिलेंगे, तो कुछ छात्र परिणाम देखकर असंतुष्ट होंगे. उन्हें यह लग सकता है कि यदि उन्होंने थोड़ी और अधिक मेहनत की होती, तो शायद परिणाम भी और अच्छे आते! आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने बताया है कि विद्यार्थी में तीन गुण जरूर होना चाहिए -स्वयं पर पूर्ण विश्वास, स्थिरता और दृढ़-संकल्प. कुछ विद्यार्थियों में इच्छा तो होती है, लेकिन उनमें वह दृढ़-संकल्प नहीं होता है कि वे अपनी इच्छा पूरी कर सकें. यदि किसी का व्यक्तित्व अस्थिर और दृढ़-संकल्पित नहीं है तो वे निश्चित ही जीवन के उतार-ंचढ़ाव में स्वयं को शिकार और पीड़ित के रूप में देख (Sri Sri Ravi Shankar) सकते हैं. समता के लिए स्थिरता जरूरी श्री श्री रविशंकर (Sr...
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