Posts

Showing posts from April, 2021

कठिन अनुभवों से मिलती है सीख

कठिन अनुभवों से मिलती है सीख हम जीवन भर कठिन परीक्षाओं से गुजरते रहते हैं। कई बार हमसे गलतियां भी हो जाती हैं; पर खुद के अनुभवों से ही सीख मिलती है और हम बनते हैं सद् मानव। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशकों में यथार्थवादी कहानियों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में नि:संदेह एक नाम फ्रेंच लेखक गाय डे मोपांसा का है। उन्होंने मात्र 43 वर्ष की आयु में तीन सौ से अधिक कहानियां और छह उपन्यास लिख डाले। उनकी ज्यादातर कहानियां यथार्थ का ही चित्रण करती हैं। मोपासा के बारे में यह प्रचलित है कि माता-पिता के संबंध विच्छेद ने उनके मन-मस्तिष्क को गहरे तक प्रभावित किया और युवावस्था में वे कई गलत व्यसनों के शिकार हो गए। वे दिन भर यारों-दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करते रहते। इसी दौरान उन्हें एक लाइलाज बीमारी हो गई। इस बीमारी ने उन्हें सत्य से परिचय करा दिया। उन्हें यह एहसास होने लगा कि अब तक का जीवन उन्होंने व्यर्थ ही गंवा दिया। वे अब कौन-सा काम करें जिससे जीविकोपार्जन के साथ-साथ जीवन की सार्थकता भी सिद्ध हो। तभी उन्होंने निश्चय किया कि शेष जीवन को सृजनात्मक कार्यों में लगाया जाए। उनके पास विविध अनुभवों का खजाना थ...

अन्तर्मन का जागरण

नृत्य और कीर्तन से अन्तर्मन के जागरण का लक्ष्य चैतन्य महाप्रभु ने अपने अंतर्मन को नृत्य-संकीर्तन और यात्राओं से जाग्रत किया और श्रीकृष्ण से खुद को एकाकार किया। प्रभु-भक्ति में लीन चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी आज भी कभी भजन गाते, तो कभी नृत्य करते या मृदंग की थाप पर झूमते नजर आ जाते हैं। कमायचे की धुन पर मीराबाई और सूरदास के भजनों को गाते मंडलियों में शामिल लोकगायक कानों में मिश्री-सा रस घोल देते हैं। इन मंडलियों में अलग-अलग प्रदेश और अलग-अलग भाषा वाले भक्त शामिल होते हैं। उनका नृत्य और गायन किसी भी व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को झंकृत करने में सक्षम होता है। नाचते-गाते प्रभु भक्त लंबी पदयात्राएं भी करते हैं। इन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि ढोल-मृदंग की थाप, भजन-कीर्तन के सुर-नाद, भारत की सभ्यता और संस्कृति में रची-बसी लोककलाएं और यात्राएं हमारे अन्तर्मन को जाग्रत करने में सक्षम हैं। नृत्य-भजन से ईश्वर मिलन मीराबाई के पद "मेरे तो गिरधर गोपाल' चैतन्य महाप्रभु की संकीर्तन मंडली के बीच बेहद लोकप्रिय है। वर्षों पूर्व नृत्य और भजन के माध्यम से मीराबाई ने श्रीकृष...

अंगद के पैर के समान अडिग है रंगमंच

  अडिग है रंगमंच की दुनिया...   हमारे चारों ओर मनोरंजन का मायाजाल फैला हुआ है। फिर भी हम नाटक और रंगमंच की दुनिया को लुप्तप्राय नहीं मान सकते हैं। यह विधा चुनौतियों से मुकाबला करते हुए अडिग खड़ा है ,   क्योंकि इसे जिलाये रखने का जिम्मा युवा नाटककारों ने अपने कंधों पर उठा लिया है।     ' अगर कुछ कहने की छटपटाहट है , तो उसे मंच पर बोल दो। बाद में किंतु-परंतु न कहना। यहां रीटेक नहीं हो सकता। तुम्हें दर्शकों से सीधा संवाद करना है। नाटकों की दुनिया छोटी जरूर है , लेकिन समाज को बदलने की ताकत रखती है। Ó ब्रिटिश थियेटर प्रोड्यूसर और डायरेक्टर इयान डिकेंस ने एक बार अपने कलाकारों को प्रोत्साहित करते हुए कहा था। पिछले दिनों ( 4-19 जनवरी) दिल्ली में भारत रंग महोत्सव (भारंगम) आयोजित किया गया। इसमें 7 विदेशी , 16 लोक कलाओं पर आधारित नाटकों के साथ-साथ कुल 71 नाटकों का मंचन हुआ। मार्केटिंग मैनेजर घोषित करते हैं कि पहले दिन टिकटों से 1.50 लाख रुपए से अधिक की कमाई हुई। समीक्षक लाख दावा करें कि भारत में थियेटरों की दुनिया अवसान पर है , पर दिल्ली के अलग-अलग थियेटर ऑडि...

कोरोना संकट में ऑनलाइन थियेटर

  थियेटर के लिए कोरोना संकट काल दर्शकों से जुड़ने का अवसर लेकर आया है स्मिता ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से अभिनय की बारीकियां तो बताई-सिखाई जा सकती हैं, लेकिन ऑनलाइन या वर्चुअल प्ले को थियेटर का बदला स्वरूप नहीं माना जा सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि थियेटर की पहली शर्त है लाइव परफॉर्मेंस, जिसमें दर्शकों और अभिनेता-अभिनेत्रियों के बीच कोई कैमरे की दीवार नहीं होती। वर्चुअल प्ले लंबे समय तक नहीं रह सकते हैं। वेबिनार के माध्यम से अभिनय की बारीकियां लॉकडाउन की वजह से हमारे जीवन में बहुत सारे बदलाव आए। न सिर्फ हमारी दिनचर्या बदली, बल्कि हमारी सोच, नजरिया व काम करने का तरीका भी बदल गया। आज न सिर्फ ऑनलाइन क्लासेज , बल्कि ऑफिस के काम भी घर बैठे अंजाम दिए जा रहे हैं। इसलिए रंगमंच की पाठशाला नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ने रंगमंच के स्टूडेंट्स को भी घर बैठे रंगमंच की बारीकियां सिखाना तय किया। एनएसडी वेबिनार के माध्यम से न सिर्फ थियेटर के इतिहास, बल्कि अभिनय की बारीकियां, आधुनिक भारतीय रंगमंच, रंगमंच में प्रकाश की महत्ता आदि जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर थियेटर दिग्गजों के विचा...

लेखक रस्किन बॉन्ड जन्मदिन

  छोले-भटूरे खाकर रस्किन बॉन्ड  ने मनाया  जन्मदिन स्मिता आज बच्चों-किशोरों के चहेते व विश्वप्रसिद्ध अंग्रेजी भाषा के लेखक रस्किन बॉन्ड का जन्मदिन है। आज वे 86 वर्ष के हो गए हैं, पर वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से वे भी मसूरी के अपने घर में लॉकडाउन हैं। एक टेलिफोनिक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने जन्मदिन मनाने की योजना के बारे में बताया कि इस साल उनका कुछ भी करने का इरादा नहीं है। सभी लोगों की तरह वे घर पर ही रहेंगे। पूरा दिन वे अपने परिवार और अपनी किताबों के साथ ही समय बिताएंगे। यदि कोई आइडिया उनके मन में आएगा, तो उसे अन्य दिनों की तरह अपने नोटपैड पर जरूर लिखेंगे। रस्किन अपने को फूडी नहीं मानते हैं, लेकिन भारतीय चटपटा खाना, जैसे कि टिक्की चाट, छोले-भटूरे आदि उन्हें बहुत पसंद है। वे कहते हैं-अपने जन्मदिन पर तो मैं छोले-भटूरे ही खाऊंगा। घर से बाहर तो निकलना नहीं है, इसलिए डिनर में घर पर ही छोले-भटूरे तैयार होगा। मुझे इस तरह की चटपटी चीजें बहुत पसंद हैं। लॉकडाउन में रस्किन बॉन्ड ने एक नायाब आइडिया निकाला। पिछले कुछ दिनों से वे ऑल इंडिया रेडियो...