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Showing posts from August, 2020

अमेरिका से आये शिमला में सेब

कल घर पर एक रिसर्च स्टूडेंट आये, जिनसे मीठे चमकदार सेब की कहानी पता चली। शिमला में जो बहुतायात में लाल, रसीले और मीठे सेब के बागान हैं, वे सेब स्थानीय नहीं, बल्कि अमेरिका से लाये गए हैं। अमेरिका से सेब को सत्यानंद स्टोक्स यानी सैमुएल इवान्स स्टोक्स जूनियर ने यहां लाया था। सैमुएल शिमला आये थे कुष्ठरोगियों की सेवा करने, लेकिन उनके पिता को यह सब पसंद नहीं आया। वे उन्हें एक सफल व्यवसायी बनाना चाहते थे। सैमुएल ने अनुभव किया कि शिमला में अमेरिका जितनी ही ठंड पड़ती है, तो फिर क्यों न सेब की खेती यहां की जाए। यह संभवतः 1905-1916 की बात रही होगी। उस समय पेड़ पौधों के कलम को विदेश से भारत लाना जुर्म था। उन्होंने एक पेन के अंदर सेब की कलम को रखा और उसे भारत ले आये। यहां एक पौधे के साथ लगाकर देखा, तो सेब के पौधे की जड़ें जमीन में लग गईं। यह बात सैमुएल ने मां से बताई और  शिमला में ही बसने की चाहत जाहिर की। कहानी है कि आगे मां ने अमेरिकी सेब के बीज और शिमला में जमीन खरीदकर सैमुएल को दी।यहां आकर सैमुएल ने अपना नाम बदलकर सत्यानन्द रख लिया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। जलि...

नोखू-धन्ना और राजा संसारचंद की प्रेम कथा

धर्मशाला क्या मुझे तो लगता है कि आप हिमाचल के किसी भी इलाके में चले जाएं, गाहे-बगाहे अपनी भेड़-बकरियों की झुंड को हांकते चरवाहे आपको मिल जाएंगे। इन्हें आप सुच्चे स्थानीय (जिनमें जीन की कोई मिलावट नहीं) कह सकते हैं। मेरे विचार से संभवत: इसी वजह से हिमाचल की  लोककथाओं में चरवाहे शामिल हैं। खासकर यहां के लोक में घुली-मिली प्रेम कथाओं में तो जरूर। ये चरवाहे आज भी अपनी विशेष पोशाक पहनते हैं, जो इन्हें प्राचीन समय और अपनी संस्कृति से जुड़े होने का आभास दिलाता है। यूं ही एक दिन ईवनिंग वॉक करते समय अपनी भेड़-बकरियों की झुंड के साथ एक चरवाहा नजर आया। उससे तो बात नहीं हाे पाई, लेकिन बगल से गुजर रहे एक पथिक, जिन्हें अक्सर आते-जाते देखा करती थी। हिमाचल के किस्से-कहानियों के बारे में जानने की गरज से मैंने  स्वयं पहले करते हुए उनसे  पूछ ही लिया-ये चरवाहे कहां रहते होंगे? इनका अपना कोई निश्चित ठिकाना नहीं होता है। ये सालों भर घूमते रहते हैं। भेड़-बकरियां ही उनकी रोजी-रोटी हैं। उन्हीं को पहाड़-जंगल-मैदान में चराते हुए अपना जीवन व्यतीत कर लेते हैं। जब पहाड़ के नीचे बसे ग...

कुछ किस्से चार धाम के

पहाड़ के प्रति प्रेम कब पनपा,  ये ठीक ठीक याद नहीं। जब पहली बार यह मुहावरा कानों में पड़ा कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे। तब लगा था कि पहाड़ जरूर आसमान तक होगा तभी ऊंट उसके नीचे आकर अपने को छोटा माना होगा। याद है बचपन में एक बार ननिहाल फरदा, जो मुंगेर से लगभग 7 किलोमीटर दूर है, वहां मैं और मेरे भाई ने योजना बनाई कि हमलोग चल कर पहाड़ तक जाते हैं। मुंगेर जिले में भी पहाड़ हैं, पर अत्यधिक ऊँचाई वाले नहीं। हमलोग अकेले खेत से होकर जाने लगे। हमलोग चलते जाते और पहाड़ हमसे दूर होता जाता। रास्ते में सांप बिच्छू भी दिखाई दिया था। चलते-चलते हमलोगों को रामदीप मिला, जो हमारे नाना के खेतों और घर की रखवाली करता है। उसने हमलोगों को डांट लगाई और घर लौट जाने को कहा। उसने बताया पहाड़ यहां से काफी दूर है और रात हो जाएगी पहुंचते हुए। जब पिछले साल 30 सितम्बर को केदारनाथ जाने जा अवसर मिला, तो ऊंचे ऊंचे पहाड़ों को देखकर आंखें विस्मय में फैल जाएं। डर भी लगे कि अगर एक चट्टान भी खिसक गई तो क्या होगा! फिलहाल वहां के कुछ अनुभव --- जब 2013 में केदारनाथ में जल प्रलय की खबरें आईं थी, तभी मन में यह सवाल उठा था कि क्या हिम के ...

रोमांचक यात्रा

 इंदिरापुरम की पत्रकार विहार सोसायटी में कई वर्षों तक रहने के बाद जब धर्मशाला में इंडिपेंडेंट हाउस में रहने का अवसर मिला, तो अपनी छत भी मिली। छत पर जब भी जाती, तो लगता कि बचपन के दिनों में कैमरे की रील घूम गई है। मुंगेर खासकर अपने ननिहाल फरदा का परिदृश्य मन में तैर जाता और वहां की आवोहवा का एहसास प्रबल हो जाता। जब छत पर घर के सामने देखती, तो आगे खूबसूरत हिमाचल की धौलाधार पर्वत श्रृंखलाएं दिखतीं। धर्मशाला में बारिश खूब होती है। बारिश जब बंद हो जाती है, तो पहाड़ धुले-धुले और हरे-भरे नजर आते हैं। हरा रंग और चटख हो आता है। लगातार बारिश होने से पहाड़ से जब पानी धरती की ओर आते हैं, तो वे पहाड़ी नाले के रूप में तब्दील हो जाते हैंं। ये नाले आगे जाकर किसी नदी में जाकर मिल जाते हैं। बारिश होने के बाद रात में जब चारों ओर शांति छाई रहती है, तो पहाड़ी नाले में पत्थर से टकराकर कल-कल की आवाज घर दूर होने के बावजूद सुनाई देती रहती है। लगातार पानी पड़ते रहने से पहाड़ाें के कुछ भाग पर आकृतियां बन आई हैं। कहीं शंख जैसी आकृति दिखती है, तो कहीं भारत का नक्शा भी। एक जगह तो लगता कि तीन शंख एक सीध में बने ...

अनुशासन का पाठ

हिमाचल से सीख लें अनुशासन के पाठ दिल्ली की भागम-भाग जिंदगी से थके-ऊबे मन को जब हिमाचल प्रदेश आने का अवसर मिला, तो चारों ओर फैली हरियाली देखकर सबसे पहली बात जो मन में आई, वह यह थी कि जल्दी-जल्दी ढेर सारी सांसें ले लूं। काश! हम इंसानों के शरीर में ऑक्सीजन सिलिंडर जैसा कुछ इनबिल्ट होता, तो उसमें भी शुद्ध् ताजी हवा भर लेती। दिल्ली में घर और कला-प्रदर्शनियों में लगी पेंटिग्स में पहाड़ों पर पड़ने वाली सूर्य-किरणों जैसी आभा चेहरे पर सजाए कांगड़ा बहू, कांगड़ा किला, कांगड़ा चाय के बगान , हिमाच्छादित ऊंचे-ऊंचे पहाड़ तो खूब देखे थे, लेकिन आज कांगड़ा बहू छोड़कर अन्य सभी दृश्य तस्वीरों से निकलकर आंखों के सामने थे। हम मैदानी इलाके वालों को पहाड़ खूब लुभाते हैं। अलबत्ता पिछले एक महीने से यह क्रम लगातार बना हुआ है कि जब भी सुबह आंख खुलती है, तो बच्चों की तरह बालकनी में आकर सबसे पहले देख कर यह तसल्ली कर लेना चाहती हूं कि पहाड़ अपनी जगह पर अडिग तो हैं। उनकी ऊंचाई तो कम नहीं हो गई। आगे यह भी जरूर देख लेना चाहती हूं कि किस तरह सुबह सूर्य की पहली किरण को भी पहाड़ लांघने में मशक्क...